Wednesday, March 29, 2017

ઉગાડી/ચેટીચાંદ/ગુડી પડવો...

૨૯.૦૩.૨૦૧૭......આજે ઉગાડી/ચેટીચાંદ/ગુડી પડવો....

અનેક શુભેચ્છાઓ...........

Monday, March 27, 2017

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया

२७.०३.२०१७.....

आज ......कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया (हम दोनों-1961) Kabhi khud pe kabhi halaat pe rona aaya (Hum Dono-1961)
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हरेक बात पे रोना आया ।

हम तो समझे थे के हम भूल गये हैं उनको
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया ।

किस लिये जीते हैं हम किसके लिये जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ।

कौन रोता है किसी और के खातिर ऐ दोस्त
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया ।

[Music : Jaidev;   Singer : Md. Rafi;  Production House : Navketan;   Director : Amarjeet;  Actor : Dev Anand]

Thursday, March 23, 2017

गौतम बुद्ध और यशोधरा” – ओशो

२३.०३.२०१७
 आज अहंकार त्याग: गौतम बुद्ध और यशोधरा” – ओशो
गौतम बुद्ध ज्ञान को उपलब्ध होने के बाद घर वापस लौटे। बारह साल बाद वापस लौटे। जिस दिन घर छोड़ा था, उनका बच्चा, उनका बैटा एक ही दिन का था। राहुल एक ही दिन का था। जब आए, तो वह बारह वर्ष का हो चुका था। और बुद्ध की पत्नी- यशोधरा, बहुत नाराज थी। स्वभावत:। और उसने एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल पूछा।
उसने पूछा कि मैं इतना ही  जानना चाहती हूं;  क्या तुम्हें मेरा इतना भी भरोसा न था कि मुझसे कह देते कि मैं जा रहा हूं| क्या तुम सोचते हो कि मैं तुम्हें रोकतीमैं भी क्षत्राणी हूं। अगर हम युद्ध के मैदान पर तिलक और टीका लगा कर तुम्हें भेज सकते है, तो सत्य की खोज पर नहीं भेज सकेते ? तुमने मेरा अपमान किया है। बुरा अपमान किया है। जाकर किया अपमान ऐसा नहीं। तुमने पूछा क्यों नहीं? तुम कह तो देते कि मैं जा रहा हूं। एक मौका तो मुझे देते। देख तो लेते कि मैं रोती हूं, चिल्लाती हूं, रूकावट डालती हूं।
कहते है बुद्ध से बहुत लोगों ने बहुत तरह के प्रश्न पूछे होंगे। मगर जिंदगी में एक मौका था जब वे चुप रह गए; जवाब न दे पाये। और यशोधरा ने एक के बाद एक तीर चलाए। और यशोधरा ने कहा कि मैं तुमसे दूसरी यह बात पूछती हूं कि जो तुमने जंगल में जाकर पाया, क्या तुम छाती पर हाथ रख कर कह सकते हो कि वह यहीं नहीं मिल सकता था? यह भी भगवान बुद्ध कैसे कहें कि यहीं नहीं मिल सकता था। क्योंकि सत्य तो सभी जगह है। और भ्रम वश कोई अंजान कह दे तो भी कोई बात मानी जाये, अब तो उन्होंने खुद सत्य को जान लिया है, कि वह जंगल में मिल सकता है, तो क्या बाजार में नहीं मिल सकता? पहले बाजार में थे, तब तो लगता था, सत्य तो यहां नहीं है। वह तो जंगल में ही है। वह संसार में कहां, वह तो संसार के छोड़ देने पर ही मिल सकता है। पर सत्य के मिल जाने के बात तो फिर उसी संसार और बाजार में आना पडा; तब जाना यहां भी जाना जा सकता था सत्य को; नाहक भागे। पर यहां थोड़ा कठिन जरूर है, पर ऐसा कैसे कह दे की यहां नहीं है। वह तो सब जगह है। भगवान बुद्ध ने आंखे झुका ली। और तीसर प्रश्न जो यशोदा ने चोट की, शायद यशोदा समझ न सकी की बुद्ध पुरूष का यूं चुप रह जाना अति खतरनाक है। उस पर बार-बार चोट कर अपने आप को झंझट में डालने जैसा है| सो इस आखरी चोट में यशोदा उलझ गई। तीसरी बात उसने कहीं, राहुल को सामने किया और कहा कि ये तेरे पिता है। ये देख, ये जो भिखारी की तरह खड़ा है, हाथ में भिक्षा पात्र लिए। यहीं है तेरे पिता। ये तुझे पैदा होने के दिन छोड़ कर भाग गये थे। जब तू मात्र के एक दिन का था। अभी पैदा हुआ नवजात। अब ये लौटे है, तेरे पिता, देख ले इन्हीं जी भर कर। शायद फिर आये या न आये।
तुझे मिले या न मिले। इनसे तू अपनी वसीयत मांग ले। तेरे लिए क्या है इनके पास देने के लिए। वह मांग ले। यह बड़ी गहरी चोट थी। बुद्ध के पास देने को था क्या। यशोधरा प्रतिशोध ले रही थी बारह वर्षों का। उसके ह्रदय के घाव जो नासूर बन गये थे। लेकिन उसने कभी सोचा भी नहीं था कि, ये घटना कोई नया मोड़ ले लेगी।
भगवान ने तत्क्षण अपना भिक्षा पात्र सामने खड़े राहुल के हाथ में दे दिया। यशोधरा कुछ कहें या कुछ बोले। यह इतनी जल्दी हो गया। कि उसकी कुछ समझ में नहीं आया। इस के विषय में तो उसने सोचा भी नहीं था। भगवान ने कहा,बेटा मेरे पास देने को कुछ और है भी नहीं, लेकिन जो मैंने पाया है वह तुझे दूँगा। जिस सब के लिए मैने घर बार छोड़ा तुझे, तेरी मां, और इस राज पाट को छोड़, और आज मुझे वो मिल गया है। मैं खुद चाहूंगा वही मेरे प्रिय पुत्र को भी मिल जाये। बाकी जो दिया जा सकता है। क्षणिक है। देने से पहले ही हाथ से फिसल जाता हे। बाकी रंग भी कोई रंग है? संध्या के आसमान की तरह,जो पल-पल बदलते रहते है। में तो तुझे ऐसे रंग में रंग देना चाहता हूं जो कभी नहीं छुट सकता।
तू संन्यस्त हो जा। बारह वर्ष के बेटे को संन्यस्त कर दिया। यशोधरा की आंखों से झर- झर आंसू गिरने लगे। उसने कहां ये आप क्या कर रहे है। पर बुद्ध ने कहा, जो मरी संपदा है वही तो दे सकता हूं। समाधि मेरी संपदा है, और बांटने का ढंग संन्यास है। और यशोधरा, जो बीत गई बात उसे बिसार दे। आया ही इसलिए हूं कि तुझे भी ले जाऊँ। अब राहुल तो गया। तू भी चल। जिस संपदा का मैं मालिक हुआ हूं। उसकी तूँ भी मालिक हो जा। और सच में ही यशोधरा ने सिद्ध कर दिया कि वह क्षत्राणी थी।
तत्क्षण पैरों में झुक गई और उसने कहा- मुझे भी दीक्षा दें। और दीक्षा लेकर भिक्षुओं में, संन्यासियों में यूं खो गई कि फिर उसका कोई उल्लेख नहीं है। पूरे धम्म पद में कोई उल्लेख नहीं आता। हजारों संन्यासियों कि भीड़ में अपने को यूँ मिटा दिया। जैसे वो है ही नहीं। लोग उसके त्याग को नहीं समझ सकते। अपने मान , सम्मान, अहंकार को यूं मिटा दिया की संन्यासी भूल ही गये की ये वहीं यशोधरा है। भगवान बुद्ध की पत्नी। बहुत कठिन तपस्या थी यशोधरा की। पर वो उसपर खरी उतरी। उसकी अस्मिता यूं खो गई जैस कपूर। बौद्ध शास्त्रों में इस घटना के बाद उसका फिर कोई उल्लेख नहीं आता। कैसे जीयी, कैसे मरी,कब तक जीयी, कब मरी, किसी को कुछ पता नहीं। और जब आप अति विशेष हो तो आपको अपनी अति विशेषता को छोड़ना अति कठिन है। यशोधरा ने छोड़ा, उन संन्यासियों की भिड़ में ऐसे गुम हो गये। यूं लीन हो गये, यूं डूब गये, इसको कहते है आना । कि आने के पद चाप भी आप न देख सके कोई ध्वनि भी न हुई, कोई छाया तक नहीं बनी ।
ओशो

[आपुई गई हिराय, प्रवचन—10]

Thursday, March 2, 2017

યજ્ઞોપવીત.....૦૧/૦૩/૨૦૧૭

તા.૦૨.૦૩.૨૦૧૭...

૦૧/૦૩/૨૦૧૭
ઈશ્વર કૃપા,વડીલો/કુટુંબીઓ ના આશિષ  થી ચી. પાર્થ /જગત ને આજ રોજ તા.૦૧/૦૩/૨૦૧૭.-ફાગણ સુદ-૩ ના રોજ ઘર આંગણે  શાસ્ત્રોક્ત, વેદિક વિધિ પ્રમાણે યજ્ઞોપવીત આપેલ છે..તેઓ બન્ને તરફ થી સર્વે ને પ્રણામ Will post.photographs shortly....કિરણ/નિરુપમ

યજ્ઞોપવીત
યજ્ઞોપવીત અથવા જનોઈ કે ઉપનયન (સંસ્કૃત: यज्ञोपवीतम्, उपनयन) હિંદુ ધર્મના સંસ્કારો પૈકીનો દિક્ષા સંસ્કાર છે જેમાં ધારકને ત્રિસૂત્રી આપવામાં આવે છે જે તેને મળનારા જ્ઞાનનાં પ્રતીક સમાન છે.
ત્રિસૂત્રીની સૂચકતા
હિંદુ અને બૌદ્ધ ધર્મમાં જનોઈ સૂતરના પાતળા દોરાઓની બનેલી હોય છે જેને બાળકની અભ્યાસાર્થી ઉંમર અથવા એક અર્થમાં પુખ્તતા દર્શાવવા માટે પહેરવામાં આવે છે.[૧][૨] આ ત્રિસૂત્રીને પ્રાદેશિક વૈવિધ્ય મુજબ અનેક નામોથી ઓળખવામાં આવે છે, જેમકે જનોઈ, જનેઉ, યજ્ઞોપવીત, યોન્ય અને ઝુન્નર.[૩][૪]
યજ્ઞોપવીતની વિધિ (ઉપનયન) કે જેમાં ધારકને જનોઈ પ્રદાન કરવામાં આવે છે તે સામાજીક અને ધાર્મિક રીતે અગત્યનો સંસ્કાર ગણવામાં આવે છે. હિંદુ-બૌદ્ધ સમાજમાં આ સંસ્કાર વિધિ વિવિધ રૂપે થતી જોવા મળે છે અને વિવિધ નામોથી ઓળખાય છે, જેમકે, ઉપનયન, મુંજ, જનેઉ રસમ અને બ્રતબંધ.[૫][૬] હિંદુઓમાં ઉપનયન સંસ્કાર એક સમયે ફક્ત ઉપલા ત્રણ વર્ણો (બ્રાહ્મણ, ક્ષત્રિય અને વૈશ્ય)માં જ થતો, પરંતુ આજકાલ વર્ણભેદ રાખ્યાં વગર ઘણા સંપ્રદયોમાં કિશોરાવસ્થામાં પ્રવેશતા બાળકોને આ સંસ્કાર આપવામાં આવે છે.[૭] ભલે ખૂબ ઓછા પ્રમાણમાં થતું હોય, પરંતુ ક્યારેય બાળકીઓને પણ જનોઈ દેવામાં આવે છે.[૭] આજના સમયમાં ઘણી વખત જનોઈ દેવાની વિધિ લગભગ લગ્ન સંસ્કારના એકદમ પહેલા જ કરવામાં આવે છે, પરંતુ આવા અપવાદો બાદ કરતાં મોટેભાગે તે બાળકની કિશોરાવસ્થામાં જ કરવામાં આવે છે.[૮] બૌદ્ધોમાં જનોઈ દેવાની વિધિ ગમે તે ઉંમરમાં કરી શકાય છે અને તે બાળક-બાળકી બંનેને આપવામાં આવે છે.
જનોઈનું પ્રતીકયોજન

દક્ષિણ ભારતીય બાળક તેની જનોઈની વિધિ દરમ્યાન
જનોઈના સૂત્રો (દોરા) જૂદા-જૂદા સમાજ અને પ્રદેશોમાં જૂદા-જૂદા પ્રતીક સ્વરૂપે દર્શાવવામાં આવે છે. સામાન્ય રીતે જનોઈ દેતી વખતે જનોઈમાં ત્રણ સૂત્રો હોય છે, પરંતુ કેટલીક જ્ઞાતિઓમાં દોરાની સંખ્યા છ હોય છે અને ક્યારેક તો નવ (૯) દોરા વાળી જનોઈ પણ જોવા મળે છે.
ત્રણ ઋણ
જનોઈના ત્રિસૂત્રો ક્યારેક ત્રણ ઋણના પ્રતીકરૂપ ગણાવવામાં આવે છે જેને કદી ભૂલવા ના જોઈએ-
·         પોતાના ગુરુનું ઋણ (गुरु ऋण), જનોઈ ધારકને જેણે જ્ઞાન આપ્યું છે તેનું ઋણ
·         પોતાના માતા-પિતા અને પિતૃઓનું ઋણ (पितृ ऋण), જનોઈ ધારકને જેણે અસ્તિત્વ પ્રદાન કર્યું છે તેમનું ઋણ
·         ઋષિઓ અને વિદ્વાનોનું ઋણ (ऋषि ऋण), એવા લોકોનું ઋણ જેમણે જ્ઞાન (આધ્યાત્મિક અને વ્યવહારૂ)ની પ્રાપ્તિ કરી છે અને જે જ્ઞાન હવે જનોઈ ધારકનું જીવન ઉન્નત કરવાનું છે.
કેટલાંક સંસ્કરણોમાં ઋષિ ઋણને સ્થાને 'દેવ ઋણ' ગણાવવામાં આવે છે. લગ્ન પછી જનોઈ બેવડાઈને છ દોરાની થઈ જાય છે કેમકે હવે માણસ તેની પત્નીના ઋણ પણ પોતાની જવાબદારી માનતો ગણવામાં આવે છે.[૯][૧૦][૧૧]
ત્રણ દેવીઓ
ત્રણ સૂત્રો ત્રણ દેવીઓના પ્રતીક પણ હોઈ શકે-
·         મા ગાયત્રી (गायत्री, મનની દેવી)
·         મા સરસ્વતી (सरस्वती, વચન (વાણી)ની દેવી)
·         મા સાવિત્રીi (सवित्री, કર્મની દેવી)[૧૨]
શુદ્ધતા/પવિત્રતા

સૂત્રો ધારક પાસેથી અપેક્ષિત મનવચન અને કર્મની શુદ્ધતા/પવિત્રતાના પ્રતીક સમાન પણ માનવામાં આવે છે.