Sunday, November 27, 2011

A milk man turns……90…….Dr.Kurien………


૨૭.૧૧.૨૦૧૧
આજે...............A milk man turns……90…….Dr.Kurien………
                                       Milk city celebrates as Kurien turns 90 


TIMES NEWS NETWORK 

Vadodara: Anand,known as the milk capital of the country,celebrated the 90th birthday of the Father of White Revolution Dr Verghese Kurien on Saturday with much fanfare.
Scores of visitors arrived to greet Kurien at Kurien Enclave,which is home to the doyen of co-operatives.At Amul Dairy,a mega blood donation camp was organized to mark the occasion.
Kurien,the founder chairman of Gujarat Co-operative Milk Marketing Federation (GCMMF),the National Dairy Development Board (NDDB) and the Institute of Rural Management,Anand (IRMA) among others had arrived at Anand on May 13,1949,as a dairy engineer appointed by government to look after the operations of Government Research Creamery.
Kurien had started his life from a garage.He helped founder chairman of Amul Dairy,Tribhuvandas Patel,who was struggling to run the dairy co-operative,which was set up with the inspiration of Iron Man of India Sardar Patel.It was from Amul Dairy that Dr Kurien started his stint with the co-operative sector.During the blood donation camp,which was also held in Kolkata and Pune,Amul Dairy collected over 1,100 blood units donated by employees,their families,farmers and well wishers apart from Dr Kuriens daughter Nirmala.
In normal course,we would have collected around 250 blood bottles.But on Saturday,all the employees and their family members came wholeheartedly to join the camp where we collected 715 blood units, secretary of Anand branch of Indian Red Cross Society Mehul Patel told TOI.
Meanwhile,GCMMF officials,who had launched a special campaign as tribute to the milkman,said,Dr Kurien was trending on top in Twitter.It seems India is celebrating its milkmans birthday.


Milk city Anand on Saturday marked 90th birthday of Dr Verghese Kurien,the Father of White Revolution with much fanfare.While thousands of wishes poured in through the special campaign launched by GCMMF,at Dr Kuriens residence in Anand,GCMMFs top brass,including its chairman Parthi Bhatol and managing director R S Sodhi,greeted him with a bouquet of 90 red roses and a cake with 90 candles on behalf of 3 million milk producers of Gujarat. 
(Note:-Author of this blog had stated his carier with “Amul Dairy” in 1974…….)
સૌજન્ય:- ટાઈમ્સ ઓફ ઇન્ડિયા ......



Monday, November 21, 2011

अब्दुर्रहीम खानखाना


૨૦.૧૧.૨૦૧૧
आज...भक्तिकाल के एक महत्वपूर्ण कवि..अब्दुर्रहीम खानखाना 


अब्दुर्रहीम खानखाना 
रहिमन धागा प्रेम का मत तोडों छिटकाय।
टूटे तो फिर ना मिले मिले गांठ पड ज़ाए।।
अब्दुर्रहीम खानखाना भक्तिकाल के एक और महत्वपूर्ण कवि हुए हैं। रहीम संवेदनशील व्यक्ति थे। कूटनीति और युध्दों की भीषण परिस्थितियों में भी इनके हृदय की धार्मिक उदारता और संवेदनशीलता नष्ट नहीं हुई। वे स्वयं तो एक उत्कृष्ट कवि थे ही, उन्होंने अकबर के दरबार में उस काल के कवियों , शायरों को भी सम्मान दिलवाया और एक धार्मिक सहिष्णुता का माहौल बनाया। भिन्न धर्मों के बीच की दरार पाटने का प्रयास किया। रहीम जन्म से तुर्क होते हुए भी पूरी तरह भारतीय थे। हिन्दु भक्त कवियों जैसी उत्कट भक्ति-चेतना, भारतीयता और भारतीय परिवेश से गहरा लगाव उनके तुर्क होने के अहसास को झुठलाता सा प्रतीत होता है।
पूरे हिन्दी साहित्य के इतिहास में रहीम एक अद्भुत व्यक्तित्व थे। इतने महान योध्दा कि सोलह वर्ष की आयु से लेकर बहत्तर वर्ष की वयस तक अनेकों ऐतिहासिक लडाइयां निरंतर लडीं और जीतीं। दानी इतने बडे क़ि अगर किसी ने कहा कि मैं ने कभी एक लाख अशर्फियॉं आँख से नहीं देखीं तो, एक लाख अशर्फियां उसे दान कर दीं। विनम्र इतने कि उनके किसी साथी कवि ने कहा कि देते समय ज्यों-ज्यों रहीम का हाथ उठता है उनकी नजर नीची होती जाती है। इस पर रहीम का उत्तर था -
देनहार कोई और है भेजत हैं दिन रैन
लोग भरम हम पर धरैं यातें नीचे नैन
रहीम का जीवन एक वृहत दु:खान्त नाटक की तरह रहा है। उनके पिता बैरम खां तुर्किस्तान से आए और सोलह वर्ष की आयु से ही हुमायूं के साथ रहे।हुमायूं के मरने पर अकबर का संरक्षण इन्हीं के पास रहा। अकबर जब युवा हुए तो कुछ घृष्ट लोगों ने अकबर को भडक़ाया कि वे बादशाहत खुद न हथिया ले। अकबर ने उनसे संरक्षणत्व का अधिकार ले लिया और बादशाह बनते ही उन्हें बेदखल कर दिया। बाद में हज पर जाते समय उनका डेरा लुटा और वे कत्ल कर दिये गए। रहीम तब पाँच वर्ष के थे, अत: अकबर ने उन्हें अपने पास रखा शिक्षा-दीक्षा दिलवाई, उनका विवाह शाही परिवार में करवाया गया।कुल उन्नीस वर्ष की आयु में रहीम ने गुजरात पर विजय हासिल की और वहाँके सूबेदार नियुक्त हुए। इनका यश चतुर्दिक फैल गया, अकबर ने इन्हें प्रसन्न होकर खानखानाँ की उपाधि दी। तबसे अनेकों युध्दों और विजयों का सिलसिला चल पडा और अकबर के बाद जहाँगीर के साथ रहे। जहाँगीर ने नूरजहां के कहने पर उन्हें कैद करवा दिया और दुर्दिन शुरू हुए। सालों बाद प्रौढावस्था में चाहे जहाँगीर ने इन्हें निर्दोष पा कर इनकी मनसबें और जागीरें ससम्मान लौटा दी। फिर आंरभ हुआ जहाँगीर और शाहजहाँ के बीच का संघर्ष जिसमें खानखानाँऐसे फँसे कि शाही षडयंत्रों, अतिमद्यपान तथा अस्वस्थ होकर इनके सभी पुर्त्रदामाद चलबसे। पत्नी-पुत्री भी अधिक जीवित न रह सके। अंत में उन्होंने 72वर्ष की उम्र में महावत खाँ के विद्रोह को शांत करने के लिये एक युध्द लडा जिसमें इन्हें काफी सम्मान मिला। तब तक तन-मन जर्जर हो चुका था और इनका देहांत भी इसी वर्ष हो गया।
अदभुत शौर्य और निर्भयता तथा सैन्य व कूटनीतिक दक्षता में खानखानाँअद्वितीय थे। गुणवान और बौध्दिक और कलाप्रेमी तो थे ही। अनेक भाषाओं का ज्ञान, लोकव्यवहार और सांसारिक ज्ञान ने उन्हें बेहद लोकप्रिय बना रखा था। वे सही अर्थों में कला और सौंदर्य के पारखी थे।
रहीम के पास रणथम्भौर, कालपी और जौनपुर की जागीरें थीं। इससे वे अवधी भाषा के सम्पर्क में आए। आगरा राजधानी होने से ब्रज का प्रभाव स्वाभाविक था। इन्होंने फारसी, संस्कृत, अवधी, ब्रज तथा खडी बोली में अपना कृतित्व रचा। तमाम जिन्दगी मार्रकाट और कठिन शाही प्रपंचों के बीच रहे रहीम इतना सहज व उत्कृष्ट काव्य कैसे रच सके होंगे? कहते हैं बडे प्रभावशाली थे रहीम सुन्दर चेहरा, बाँकी पाग, बांए हाथ में रत्नजटित तलवार, दायां हाथ स्वागत या उदारता से खुला हुआ। कवि केशव ने उनका शब्दचित्र यूं खींचा है -
अमित उदार अति पाव विचारि चारु
जहाँ तहाँ आदरियो गंगा जी के नीर सों।
खलन के घालिबे को, खलक के पालिबे को
खानखानाँ एक रामचन्द्र जी के तीर सौं।।
रहीम मूलत: प्रेमपंथी थे। उन्होंने प्रेमपंथ का एक चित्र खींचा है:
रहीमन मैन तुरंग चढी चलिबो पावक मांहि।
प्रेमपंथ ऐसो कठिन सबसौं निबहत नाहिं।।
घोडे पर चढ क़र आग के भीतर चलना, ऐसी प्रेम की राह सबके बस की नहीं।लेकिन रहीम ने यही राह गही। चाहे वह यौवनकाल का प्रेम हो या सहज प्रेममय व्यवहार। रहीम के काव्य में हर तरह के लौकिक-अलौकिक भाव हैं।व्यवहारिक दर्शन है जो सबको समझ आ जाए। हास-विलास, लालसा, छल,प्रतीक्षा, उत्कंठा, लगन, भक्ति, सदजनों का प्रभाव, लौकिर्कअलौकिक प्रेम सभी से रहीम का काव्य समृध्द है।
रहीम के पहले पडाव की रचनाएं हैं, बरवै नायिका भेद और नगर शोभा यह लौकिक प्रेम से भरपूर काव्य हैं।
भँति-भाँति की स्त्रियों, नायिकाओं की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन इनमें मुख्य है। यह काव्य लौकिक प्रेम का सरस प्रस्तुतिकरण है। एक चित्र-
मितवा चलेउ बिदेसवा, मन अनुरागी।
पिय की सुरत गगरिया, रहि मग लागि।।
प्रिय की स्मृतियों का कलश लिये नायिका रास्ते में खडी है कि जब वे लौटेंगे तो स्मृतियों से भरा कलश उनका मंगल-शकुन बनेगा। इसके बाद रहीम की काव्य यात्रा का दूसरा पडाव आता है, जिसमें जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों एवं दिनों के फेर के वर्णन हैं, व्यवहारिकता, कुसंग व सत्संग के प्रभावों का वर्णन है, मान मर्यादा और नीति का चित्रण है। ये काव्य दोहों और सोरठों में है। कुछ उदाहरण -
रहिमन याचकता गहे, बडे छोटे व्हे जात 
नारायण हू को भयो, बावन अंगुर गात।।
माँगने वाला बडा होकर भी छोटा हो जाता है, विराट् नारायण भी तो माँगते समय वामन हो गए थे।
रहिमन तीन प्रकार ते , हित अनहित पहिचानि।
पर बस परे, परोस बस, परे मामला जानि।।
इस दोहे में उन्होंने कहा है शत्रु-मित्र की पहचान तीन तरह से होती है। आप परवश हो जाएं, आप पडोस में बस जाएं, या आप किसी मामले में फंस जाएं।रहीम को ओछे और बडे क़ी बडी सूक्ष्म व्यवहारिक पहचान थी। छोटा वही जो रीत जाए तो रहट की घरिया की तरह सामने आ जाए भरते ही पलट जाए।बडा वह जिसमें अपने बडप्पन का ज़रा मान न हो।
जो बडेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जाहिं।
गिरधर मुरली धर कहे कछु दुख मानत नाहिं।।
पानी की महत्ता को रहीम से अधिक मार्मिक ढंग से कोई नहीं कह सका।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरैं, मोती, मानुस, चून।।
सत्संग और कुसंग पर यह सटीक दोहा -
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिये, तसोई फल दीन ।।
स्वाति की एक बूंद और तीनों संगति में उसकी अलग अलग परिणति होती है।केले के वृक्ष पर गिर वह रस का
निर्माण करती है, सीप में प्रविष्ट हो मोती बनती है और साँप के मुख में जा विष बनती है।
भिन्न-भिन्न अनुभवों से गुजर कर भी रहीम प्रेम की सरसता छोड नहीं पाते।क्योंकि वे जानते हैं कि प्रेम से तो नारायण भी बस में हो जाते हैं और जीवन की सार्थकता इसी में है कि -
रीति, प्रीति सबसौं भली, बैर न हित मित गोत।
रहिमन याहि जनम की, बहुरि न संगत होत।।
सभी से प्रीति और रीति पूर्ण व्यवार करना ही उचित है। कम से कम हितेषी,मित्र और समान गोत्र वालों से बैर नहीं करना चाहिये। अब एक ये ही जनम तो मिला है जो कि फिर लौट कर नहीं आने वाला। इसी सिध्दान्त पर चल रहीम
अपनी काव्य यात्रा के तीसरे पडाव पर पहुँचते हैं, जहाँ उनका प्रेम अलौकिक हो उठता है। यहाँ त्याग और समर्पण प्रेम की पराकाष्ठा है।
रहिमन प्रीत सराहिये मिले होत रंग दून।
ज्यों हरदी जरदी तजै, तजै सफेदी चून।।
प्रेम में अहं का त्याग ही सर्वश्रेष्ठ है, जैसे हल्दी और चूना मिलते हैं तो हल्दी अपना पीलापन छोड देती है और चूना अपनी सफेदी दोनों मिल कर प्रेम का एक नया चटक लाल रंग बनाते हैं।
प्रेम के लौकिक-अलौकिक महत्व के इन प्रसिध्द दोहों ने रहीम को काव्यजगत में अमर कर दिया।
रहिमन धागा प्रेम का मत तोडो छिटकाय।
टूटे तो फिर ना मिले मिले गांठ पड ज़ाए।।

प्रीतम छबि नैनन बसि, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाए।।
जब प्रिय की छवि नेत्रों में बसी है तो किसी और छवि की जगह ही कहाँ शेष है? जब सराय ही भरी रहेगी तो आने वाले पथिक देख कर ही लौट जाएंगे। वे तो आखों की पुतली को ही शालिग्राम बना लेना चाहते हैं। जिसे नेह के जल से नित अर्ध्य दे सकें।
रहिमन पुतरी स्याम, मनहुँ जलज मधुकर लसै।
कैंधों शालिग्राम, रूपे के अरधा धरे।।
यही तो एक मुस्लिम कवि के पवित्र प्रेम की पराकाष्ठा थी। रहीम ने श्री कृष्ण के विरह में तडपती गोपियों से लेकर, राम और गंगा मैया को भी अपना काव्य समर्पित किया, कहीं ब्रज में, अवधी या संस्कृत में। रहीम के मन के ये भक्ति परक प्रेम के संस्कार एक सहज आत्मीयता के कारण ढल सके। उनके व्यक्तित्व की उदारता में फारसी के साथ गाँव की ब्रज, अवधी, पराक्रम के साथ क्षमा, औदार्य और राजसी ठाठबाट के साथ फकीरी हमेशा घुली-मिली रही। वे मुसलमान जन्मे, मुसलमान दफनाए गए। उनका धर्म और कर्म विराट था,संकीर्णता की कहीं कोई गुंजाईश नहीं थी।
जदपि बसत हैं, सजनी, लाखन लोग।
हरि बिन कित यह चित्त को, सुख-संजोग।।
ऐसे नेही चित्त वाले रहीम के काव्य पर तुलसी और सूर का आत्मीय प्रभाव था।उनके जीवन का एक मात्र दर्शन था प्रेम और आत्मीयता, उदारता। मोतियों का हार टूट जाए तो उसे हम बार बार पोह लेते हैं , इसी प्रकार मानवीयता और मूल्यों से लगाव छूटे तो उसे फिर से जोडना चाहिये। रहीम इसी जुडाव के कवि हैं -
टूटे सुजन मनाइये, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिर-फिर पोहिये, टूटे मुक्ताहार ।।

Friday, November 18, 2011

मशहूर शाईर वशीर “बद्र”.


૧૮.૧૧.૨૦૧૧
आज की बात मशहूर शाईर वशीर बद्रके नाम ..............
क्या आप किसी ऐसे शाइर को जानते हैं जिसे सिर्फ एक शेर के कारण सारी दुनिया जानती हो ? उस शाइर का नाम बशीर बद्रही है, जिसने पन्द्रह बरस की उम्र में ही यह शेर लिखकर उर्दू अदब की दुनिया में तहलका मचा दिया था
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाये


 उस वक्त का यह जुगनू कुछ ही दिनों में बद्रबन गया और आज तक अपनी 
चाँदनी से उर्दू अदब को रौशन कर रहा है। अदब की दुनिया में वही शे
 मक़्बूल होता है, जो ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ हो, जिसमें अपनापन हो और
 कोई बात करने का सलीका भी हो। ज़रा उनका यह शेर देखें-
                               लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
              तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में


बशीर बद्रके यहाँ हर मौज़ी पर शेर मिल जाता है। ऐसे अनेक मौज़ूआत है, जिन पर बशीर बद्रने शेर कहे हैं। लेकिन दरअस्ल, बशीर बद्रमुहब्बत के शाइर हैं। उनका कहना है-

इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे



बशीर बद्रकी शाइरी में क़ुदरत की कारीगरी और बशीर बद्रकी हरदिलअज़ीज़ी का राज़ छिपा हुआ है...
 (सौजन्य हिंदी सहित्य ब्लॉग .....पिक्चर .....इन्टरनेट )

Thursday, November 17, 2011

હનુમાનજી અને નારદ


૧૬.૧૧.૨૦૧૧
આજે એક ટચુકડી સુંદર બોધ કથા............

                                           બોધ કથા
                        હનુમાનજી અને નારદ
એક વાર નારદજી ફરતા ફરતા સ્વર્ગ લોક માં જઇ ચડ્યા.
ભગવાન હાજર ન હતા.પરતું સિહાસન પાસે  ભગવાન ની એક ડાયરી પડી હતી.કુતુહલતા વશ નારદજીએ આ ડાયરી   જોવા માંડી.ડાયરી માં ભગવાને પોતાની અંગત વિગતો ટપકાવેલી હતી.આ ડાયરી માં ભગવાને પોતાના ખાસ ભક્તો ની યાદી પણ કરી હતી. નારદ નું પોતાનું નામ પ્રથમ સ્થાને જોઈ ખુબજ ખુશ થયાં.આખી યાદી જોઈ પરંતુ  હનુમાનજી નું નામ તેણે જોયું નહિ.નારદજી તો ખુશ ખુશાલ થઇ ગયા.પહોચ્યા હનુમાનજી પાસે.અંતરમાં આનંદ હોવાછતાં ગંભીર મુખ રાખી બોલ્યા ....અરે હનુમાનજી હુ તો આજે ખુબજ દુઃખી,દુઃખી થઇ ગયો છું. હનુમાનજીએ પૂછ્યું કેમ વળી?અરે ભક્તરાજ શું કહું તમને? આજે હું સ્વર્ગ લોક માં ગયો હતો ત્યાં. મે ભગવાન ના ખાસ ભક્તો ની યાદી જોઈ.....પરંતુ ...તમને શું કહું ? તેમાં તમારું તો નામ જ નહિ ....મારું નામ પ્રથમ હોવા છતાં મને જરા પણ આનંદ ના થયો.તમે તો રામ ભક્તિ માં તમારી જાત સમર્પિત કરી દીધી ,અને તમારું નામ લખવાની દરકાર પણ ભગવાને ના લીધી.
હશે ...હનુમાનજી એ કહ્યું ...હું કયા નામ લખાવવા પ્રભુ ની ભક્તિ કરું છું?પરતું હનુમાનજી નાં મન માં શંકા નો કીડો સળવળવા લાગ્યો કે --આમ કેમ?
આજે જયારે હનુમાજી રામજી ની સેવા કરવા લાગ્યા ત્યારે રામજીને લાગ્યું કે સેવક આજે અસ્વસ્થ છે ,.
તેમણે હનુમાનજી ને પુછ્યું કે કેમ ભક્તરાજ તબિયત તો બરાબર છે ને?
હનુમાનજી-હાં મહારાજ
રામ-હનુમાનજી તમે કહો કે નાં કહો પરંતુ તમે આજે ચોક્કસ અસ્વસ્થ છો.
હનુમાનજી --- નાં..નાં..મહારાજ એ તો અમથુંજ.....
રામજીએ પોતાના સોગંધ દઇ હનુમાન ને દિલ ની વાત જણાવવા કહ્યું-
ત્યારે હનુમાનજીએ નારદજી એ કહેલ ડાયરી ની વાત કહી.
રામજી ખડખડાટ હસી પડ્યા ......
અરે ..ભક્તરાજ આટલીજ વાત છે ......નારદજીએ જોયેલી ડાયરી તો આમ ડાયરી છે ,તે સિવાય હું એક ખાસ નાની ડાયરી રાખું છું અને તેમાં માત્ર મને સમર્પિત ચાર પાંચ ભકતો  ના જ નામ રાખું છું...રામજીએ છાતીએ રાખેલ ડાયરી હનુમાનજી જોવા  ને આપી ........તેમાં પહેલું નામ હનુમાનજી નું 
હતું ....અ ડાયરી માં નરસિંહ,મીરાં,કબીર,અને તુકારામ પણ હતા......
હનુમાનજી –ની આંખો માંથી આસુંઓ ની ધારા વહેવા લાગી...પ્રભુ ! મને માફ કરો ...મે પામરે આપના પર શંકા કરી ...........   


   

Tuesday, November 15, 2011

બાળ દિન .


૧૪.૧૧.૨૦૧૧
આજે ૧૪ નવેમ્બર....ચાચા નહેરુ નો જન્મદિવસ .....બાળ દિન .......... શત શત  વંદન સહ.....jagat's speech....my script.....in his school days....



બાળ દિન 
વ્હાલા બાળ દોસ્તો ,
આજે ૧૪ મી નવેમ્બર છે. આજ નો દિવસ આખા દેશ માં બાળદિન તરીકે ઊજવવામાં આવે છે.પંડિત જવાહરલાલ નહેરુ નો જન્મ ૧૪ નવેમ્બર ૧૮૮૯ ના  અલ્લાહબાદ માં  થયો હતો.તેમાંના પિતા નું નામ મોતીલાલ અને માતા નું નામ સ્વરૂપ રાણી હતું .જવાહરલાલ ઇંગ્લેન્ડ માં ભાણી ને બેરિસ્ટર થયાં હતા.આપણા દેશ ને સ્વતંત્ર કરવા તેંઓ ઘણી વાર જેલ માં ગયા હતા .આપણો દેશ સ્વતંત્ર થયાં પછી તે આપણા દેશ ના પહેલા વડા પ્રધાન બન્યા તેમને બાળકો ખૂબજ વહાલાં હતાં,તેથી તેમનો જન્મદિવસ બાળ દિન તરીકે ઊજવાય છે.  
 નહેરુ ચાચા ને ગુલાબનું ફૂલ ખૂબજ ગમતું. ૨૭ મે ૧૯૬૪ ના રોજ તેમનું અવસાન થયું. તેંઓ એ આપણને આરામ હરામ હે ‘’ નો મંત્ર આપ્યો. મિત્રો આજે  આપણે તેમનો આ મંત્ર જીવન માં ઉતારવાનો સંકલ્પ કરીએ.
જય હિંદ.......

જગત અવાશિયા
બાળ દિન નિમ્મિતે.......
ગુજરાત વિદ્યુત બોર્ડ ,પ્રાથમિક શાળા,
ધુવારણ 
ધોરણ -૩
૧૪.૧૧.૧૯૯૫
   

Monday, November 14, 2011

"જ્યાં જ્યાં વસે એક ગુજરાતી,ત્યાં ત્યાં સદાકાળ ગુજરાત !!")




૧૩.૧૧ ૨૦૧૧
આજે  ચિ જગત (મારો પુત્ર) નો ઈ-મેઈલ ........


Dear all,

Hope you all are fine. Yesterday (Parthbhai's birthday) proved to be one of the memorable days for me.. 

I visited world's tallest building "Burj Khalifa"..Well, I am not finding the words to describe this thrilling experience..May be I am too small to say something on this tallest 
building of the world...!!

Fountain show at night, gathering of different cultures from all parts of the world,tower in moon light were the eye-catching moments..

I also had a chance to take the ride of Dubai metro,which is a driverless, fully automated metro network in the United Arab Emirates city of Dubai. (During this journey an unknown passenger started talking on his cell phone and believe me the language in which he started conversation was "Gujarati" -- and I experienced :  "જ્યાં જ્યાં વસે એક ગુજરાતી,ત્યાં ત્યાં સદાકાળ ગુજરાત !!")

Sharing few pics..Hope you would like those..

Thanks & Regards,
Jagat










Facts about Burj Khalifa:

Burj Khalifa (Arabicبرج خليفة "Khalifa Tower"), known as Burj Dubai prior to its inauguration, is a skyscraper in Dubai, United Arab Emirates, and is currently the tallest structure in the world, at 829.84 m (2,723 ft). Construction began on 21 September 2004, with the exterior of the structure completed on 1 October 2009. The building officially opened on 4 January 2010, and is part of the new 2 km2 (490-acre) flagship development called Downtown Dubai at the 'First Interchange' along Sheikh Zayed Road, near Dubai's main business district. The tower's architecture and engineering were performed by Skidmore, Owings and Merrill of Chicago, with Adrian Smith as chief architect, and Bill Baker as chief structural engineer.[10][11] The primary contractor wasSamsung C&T of South Korea.

Love & Regards,
Jagat