Wednesday, October 16, 2019

(१२७)-राष्ट्र गीत जन गण मन की कहानी ..............................​.

(૧૨૭)-जन गण मन की कहानी ..............................​.


सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।

उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।

इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। "

जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।

उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे।

रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।

1941
तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।

गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।

बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।

नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।

बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है।

तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?

इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद्। और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये अंग्रेजी छोड़ कर।

जय हिंद |
संकलित

Thursday, October 10, 2019

(१२६)...राधा क्रिशना

(१२६)...राधा क्रिशना





राधा –क्रिशना
आज तक का सबसे सुदंर मैसेज .........ये पढने के बाद एक "आह" और एक "वाह" जरुर निकलेगी...
कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए 
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए
विचलित से कृष्ण- 
प्रसन्नचित सी राधा...
कृष्ण सकपकाए
राधा मुस्काई
इससे पहले कृष्ण कुछ कहते 
राधा बोल  उठी-
"कैसे हो द्वारकाधीश ??"
जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया
फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया
और बोले राधा से ...
"मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!
आओ बैठते है ....
कुछ मै अपनी कहता हूँ 
कुछ तुम अपनी कहो
सच कहूँ राधा 
जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..."
बोली राधा - 
"मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते
इन आँखों में सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे
प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको ?
कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए
यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?
एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया 
और
दसों उँगलियों पर चलने वाळी
बांसुरी को भूल गए ?
कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....
जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी
प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली
क्या क्या रंग दिखाने लगी
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी
कान्हा और द्वारकाधीश में
क्या फर्क होता है बताऊँ ?
कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते
सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है
युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं
और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं
कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी
दुखी तो रह सकता है
पर किसी को दुःख नहीं देता
आप तो कई कलाओं के स्वामी हो
स्वप्न दूर द्रष्टा हो
गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो
पर आपने क्या निर्णय किया
अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?
और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया ?
सेना तो आपकी प्रजा थी
राजा तो पालाक होता है
उसका रक्षक होता है
आप जैसा महा ज्ञानी
उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन
आपकी प्रजा को ही मार रहा था
आपनी प्रजा को मरते देख
आपमें करूणा नहीं जगी ?
क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे
आज भी धरती पर जाकर देखो
अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि को
ढूंढते रह जाओगे 
हर घर हर मंदिर में
मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे
आज भी मै मानती हूँ
लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं
उनके महत्व की बात करते है
मगर धरती के लोग
युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं, i.
प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं
गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है
पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है"🌿
संकलित........

Tuesday, October 8, 2019

(125)-રાવણ


(૧૨૫)--રાવણ


જ્યારે રાવણ મરણ પથારીએ હતો ત્યારે ભગવાન શ્રીરામે લક્ષ્મણને કહ્યું કે આ સંસારથી નીતિ, રાજનીતિ અને શક્તિનો મહાન પંડિત વિદાય લઈ રહ્યો છે તમે રાવણની પાસે જાઓ અને તેનાથી જીવનની કેટલીક એવી શિક્ષા લઈ લો જે અન્ય કોઈ નહીં આપી શકે. શ્રીરામની વાત માની લક્ષ્મણ રાવણના માથા પાસે જઈ ઉભો થઈ ગયો. 

રાવણે કંઈ કહ્યું નહીં. લક્ષ્મણ ફરી રામ પાસે આવ્યા ત્યારે ભગવાન રામે કહ્યું કે કોઈની પાસેથી જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરવું હોય તો તેના ચરણ પાસે ઉભું રહેવું પડે. આ વાત સાંભળી લક્ષ્મણ રાવણના ચરણ પાસે જઈ ઉભો થઈ ગયો. તે સમયે મહાપંડિત રાવણે લક્ષ્મણને ત્રણ વાતો જણાવી જે જીવનમાં સફળતાની ચાવી છે.

1-    પ્રથમ વાત જે રાવણે લક્ષ્મણને બતાવી હતી તે આ છે કે શુભ કાર્ય જેટલી જલ્દી થઈ શકે કરી લેવું અને અશુભ કાર્યને જેટલું ટાળી શકો ટાળી દેવું. રાવણ શ્રીરામને ઓળખી ન શક્યો અને તેમની શરણે જવામાં તેણે બહુ વાર કરી દીધી જેથી તેની આ હાલત થઈ હતી. 
2-       બીજી વાત એ કે પોતાના શત્રુને ક્યારેય ખુદથી નાનો ન સમજવો અને રાવણે તે ભૂલ કરી. તેણે જેને સાધારણ વાનર અને રીંછ સમજ્યા તેમણે મારી સમગ્ર સેનાને નષ્ટ કરી દીધી. રાવણે જ્યારે બ્રહ્માજીથી વરદાન માગ્યું હતું ત્યારે વાનર અને મનુષ્ય સિવાય કોઈ તેને મારી ન શકે એવું વરદાન માગ્યું હતું પરંતુ વાનર અને મનુષ્ય જ તેની મૃત્યુનું કારણ બન્યા. 
3-    રાવણે લક્ષ્મણને ત્રીજી અને છેલ્લી વાત એ જણાવી હતી કે તમારા જીવનમાં કોઈ રહસ્ય હોય તો તેને કોઈને પણ જણાવવું ન જોઈએ અને અહિંયા રાવણની ભૂલ એ હતી કે તેણે વિભીષણને તેની મૃત્યુનું રહસ્ય જણાવી દીધું હતું. આ તેના જીવનની સૌથી મોટી ભૂલ હતી. 
સંકલિત....
વિજય દશમી,
૦૮/૧૦/૨૦૧૯.
મંગળવાર


Sunday, September 22, 2019

(124)-Charity wrapped in Dignity!

(124)-Charity wrapped in Dignity




She asked him, "How much are you selling the eggs for?"
The old seller replied to her, "Rs.5/- for one egg, Madam."
She said to him, "I will take 6 eggs for Rs.25/- or I will leave."
The old seller replied, "Come take them at the price you want. May God bless us, and may be this is a good beginning because I have not yet sold to anyone."
She took it and walked away feeling she has won. She got into her fancy car and went to pick her friend, and invited her to a restaurant.
She and her friend sat down and ordered what they like. They ate a little and left a lot of what they ordered.
Then she went to pay the bill. The bill was Rs.1, 200/-. She gave him Rs. 1,300/- and said to the owner of the restaurant: "Keep the change."
This story may seem normal to the owner of the restaurant. But it is very painful for the eggs' seller.
_The bottom line is_:
Why do we always show that we have the power when we buy from the needy and the poor? And we are generous with those who do not need our generosity?
Every time a poor child comes to me to sell something simple, I remember a tweet from the son of a rich man who said, "After every prayer my father used to buy simple goods for very expensive prices, even though he did not need them. Sometimes he used to pay more for them. I used to get concerned by this act and I told him about it. Then my father told me: 'It is a charity wrapped with dignity, my son.'"
Compare these two stories of social hypocrisy.
The first one is disappointing and the second one is inspiring.
May God enlighten our vision.
Courtesy : Bankim Juthani


(૧૨૩)--બે કપ ચા...

22/09/2019...   
(૧૨3).... બે કપ ચા........




જીવનમાં સભ્યતા ની બાબતમાં એક ગરીબ સ્ત્રી એક ગોલ્ડ મેડાલીસ્ટ ડોક્ટર કરતા આગળ નીકળી ગઈ વાંચો હૃદયસ્પર્શી વાર્તા  બે કપ ચા

સાતમ આઠમના તહેવારો હતાં. શહેરના ખ્યાતનામ ડોકટર દંપતી સુકેતુ પટેલ અને નેહલ પટેલે ત્રણ દિવસની ટુર ગોઠવી હતી. પોતાની હોન્ડા અમેઝ કારમાં જ તેઓ જવાના હતા. આમેય ઘન સમયથી બહાર ગયાં નહોતા અને હજુ પરણ્યા એને બે જ વરસ થયા હતા. સંતાનનું કાઈ વિચાર્યું નહોતું એટલે જેટલું ફરવું હોય એટલું ફરી લેવું એ એમની ગણતરી હતી. બને સાથે જ મેડીકલ કોલેજમાં ભણતાં હતા અને ત્યાંજ પ્રેમાંકુર ફૂટ્યા અને જોતજોતામાં પ્રેમનું એક મોટું વટ વ્રુક્ષ બની ગયું. શહેરમાં બેંકની લોન લઈને દવાખાનું કર્યું હતું. સુકેતુ એમડી મેડીસીન હતો અને નેહલ ગાયનેકોલોજીસ્ટ. સ્વભાવ અને હથરોટીને કારણે બને જણાએ ટૂંક સમયમાં જ ખ્યાતી હાંસલ કરી લીધી હતી. ગયા ઉનાળામાં એ લોકો મહાબળેશ્વર અને પંચગીની ગયાં હતાં. આ વખતે ઇન્દોર અને ઉજ્જૈન જવાના હતાં.
બનેની સમાન ખાસિયતો હતી. બને ને બીજા ડોકટરો સાથે સમુહમાં જવાનું ફાવતું નહિ. પોતાની ગાડી અને પોતાના સ્થળોએ પોતાને ગમે ત્યાં સુધી રહેવું. વારફરતી બને ગાડી ડ્રાઈવ કરી લેતાં હતા. ગુરુવારે બધી જ તૈયારીઓ થઇ ગઈ હતી. તૈયારીમાં તો ખાસ કશું નહોતું બસ કપડાં, જરૂરી દવાઓ અને પાણીનો મોટો જગ લઇ લીધો હતો. વરસાદ આ વરસે ઠીક ઠીક પ્રમાણમાં પડ્યો હતો એટલે જ બને એ મધ્યપ્રદેશ પર પસંદગી ઉતારી હતી. સુકેતુ પટેલ ખાવાનો શોખીન જીવડો હતો. એ ભણતો ત્યારથી જ એણે ઇન્દોર વિષે ઘણું સાંભળ્યું હતું. ત્યાં રાતે શરાફા બજારમાં ખાવાની અવનવી વાનગીઓ મળે છે. વળી દિવસે એક જગ્યાએ ખાવાની છપ્પન દુકાનો હતી. ઇન્દોર એટલે મધ્યપ્રદેશનો અસલી સ્વાદ એમ કહેવાતું હતું!!
શુક્રવારે સ્વારથી જ વરસાદ શરુ હતો. અને બને મધ્યપ્રદેશની સહેલગાહે ઉપડ્યા. વરસાદને કારણે વાહનોની અવરજવર બહુ ઓછી હતી. સારા વરસાદને કારણે રોડની બને બાજુએ પ્રકૃતિ પૂરબહારમાં ખીલી હતી. દોઢસો કિલોમીટર પછી મધ્યપ્રદેશની બોર્ડર આવવાની હતી. ગાડીની અંદર સુમધુર સંગીત વાગતું હતું. સાથે સાથે બને જણા ભરૂચની પ્રખ્યાત હાજમાં શીંગ ખાઈ રહ્યા હતા. વરસાદમાં શીંગ ખાવાનો એક અદ્ભુત લ્હાવો હોય છે. બને નવયુવાન ડોકટર દંપતી ખુશમિજાજ મુડમાં મુસાફરીનો આનંદ માણી રહ્યા હતા.
મધ્યપ્રદેશની બોર્ડર હવે ચાલીશ કિમી દૂર બતાવતી હતી. એક નાનકડું શહેર આવ્યું. અને અચાનક જ વરસાદ વધી ગયો. નાના એવા શહેરમાંથી ગાડી ટ્રાફિકને કારણે માંડ માંડ કાઢી. તેઓ બને જેમ જલદી બને તેમ મધ્યપ્રદેશમાં પ્રવેશવા માંગતા હતા. આગળ હવે બને બાજુઓ ઘેઘુર વ્રુક્ષોથી છવાયેલી હતી. વરસાદ સતત વધતો જતો હતો. રસ્તો પણ હવે ચડાવ વાળો અને ઉતરાણ વાળો હતો. ના છૂટકે સુકેતુએ ગાડીની સ્પીડ ઓછી કરી. વરસાદની સાથે પવન પણ હરીફાઈમાં ઉતર્યો હોય એમ લાગતું હતું. આજુબાજુની કંદરાઓમાં મોરલા બેવડ વળી વળીને ગહેંકતા હતા. ચારેક કિલોમીટર ગાડી ચાલી ત્યાં રોડ સાઈડ પર એક નાનકડી દુકાન હોય એમ લાગ્યું. બને એ નક્કી કર્યું કે કદાચ ત્યાં ચા મળી જાય તો ચા પીને આગળ વધવું. ગાડીને પણ સહેજ પોરો થઇ જાય બાકી બપોરનું ભોજન તો બે વાગ્યે મળે તો પણ ચાલશે.. આમેય રોજ તેઓ બપોરના બે વાગ્યે જ જમવા પામતા હતા. એક નાનકડું છાપરું હતું ત્યાં ગાડી ઉભી રાખી અને બને જણા ત્યાં ઉતર્યા. ઘર ખાસ કોઈ મોટું નહોતું ત્રણ ઓરડા હતા એકમાં દુકાન કરી હતી બીજા બે ઓરડામાં એ લોકો રહેતા હશે એમ માન્યું. દુકાનની આગળ વેફર્સના પેકેટ લટકતા હતા. બે કુતરા એક ખૂણામાં બેઠા હતા. દુકાનમાં કે આજુબાજુ કોઈ ચહલ પહલ નહોતી. નેહલ ખુરશી પર બેઠી અને સુકેતુ એ દુકાન પાસે જઈને બોલ્યો.
છે કોઈ દુકાનમાં?” જવાબમાં એક સ્ત્રી આવી તેણે ચારેક વરસનું છોકરું તેડ્યું હતું. તેને જોઇને સુકેતુ એ બે વેફર્સના પડીકા બહાર ટીંગાતા હતાં એ લીધા અને કહ્યું.
બે સ્પેશ્યલ ચા બનાવોને બહેન!! ઝડપ કરજો હો!! અમારે દૂર જવાનું છે સાંભળીને સ્ત્રી અંદર ચાલી ગઈ. અંદર કોઈ પુરુષનો ખાંસવાનો અવાજ આવ્યો અને પુરુષ અને સ્ત્રી વાતચીત કરતા હોય એમ લાગ્યું. વાતાવરણમાં ઠંડી વધી ગઈ હતી. વરસાદ શરુ જ હતો. આજુબાજુના ડુંગરો પરથી સુસવાટા મારતો પવન છેક કાળજા સુધી ઊંડે ઉતરી જતો હતો. બને જણા વેફર્સ ખાઈ રહ્યા હતા અને આજુબાજુના કુદરતના નજારાને જોઈ રહ્યા હતાં. લગભગ દસ મિનીટ પસાર થઇ ગઈ. ચાના કોઈ ઠેકાણા હજુ હતાં નહિ!! સુકેતુ પાછો દુકાનમાં જઈને ચાની ઉઘરાણી કરી. વળી પુરુષનો ઉધરસ વાળો અવાજ આવ્યો અને પેલી સ્ત્રી આવી એ થોડી પલળી ગઈ હોય એમ લાગ્યું. આવીને એ બોલી.
ચા ઉકળે છે.. તુલસીના પાન વાડામાં લેવા ગઈ હતી એટલે મોડું થયું.સાહેબ થોડી વાર જ લાગશે.. બેસો તમે હમણા જ ચા આપું છુંકહીને એ વળી પાછી અંદર અદ્રશ્ય થઇ ગઈ!! નેહલ તો આજુબાજુ જોઈ જ રહી હતી. વેફર્સ ખવાઈ ગઈ હતી. ત્યાં પેલી સ્ત્રી દેખાણી. એક ડીશમાં બે મેલા ઘેલા કપ હતાં. એમાં ગરમાગરમ ચા હતી. કપ જોઇને જ સુકેતુનો મુડ ખરાબ થઇ ગયો. પણ નેહલે એનો હાથ દબાવ્યો એટલે એ શાંત રહ્યો. કચવાતા મને બેય કપ લઈને વળી પાછો એ ખુરશી પર બેઠો. એક કપ એણે નેહલને આપ્યો અને એક કપ એણે મોઢે માંડ્યો!!
તુલસી અને આદુના સ્વાદ વાળી અદ્ભુત ચા બની હતી. મેલાઘેલા કપનો ગુસ્સો જે હતો એ ઓગળી ગયો હતો. વરસાદી વાતાવરણમાં ગરમાગરમ ચા બનેના કાળજામાં એક અનેરો આનંદ આપી રહી હતી. ચા પીવાઈ ગયા પછી બિલ ચુકવવા સુકેતુ દુકાન પાસે ગયો. અને સોની નોટ પેલી સ્ત્રીને આપી. પેલી સ્ત્રી બોલી.
વિસ રૂપિયા છુટ્ટા આપોને મારી પાસે છુટ્ટા નથીસુકેતુ એ બીજા વીસ રૂપિયા છુટ્ટા આપ્યા અને પેલી સ્ત્રીએ સો રૂપિયા પાછા આપ્યાં. સુકેતુ બોલ્યો.
બે વેફર્સ પણ લીધી છે એના પૈસા પણ લઇ લો
વેફર્સના પૈસા જ લીધા છે.. ચાના પૈસા નથી લીધાપેલી સ્ત્રી બોલી.
કેમ ચાના પૈસા નથી લીધા”??? સુકેતુએ નવાઈથી પૂછ્યું.
ચા અમે વેચતા નથી.. આ તો આ છોકરા માટે દૂધ રાખ્યું હતું એમાંથી તમારે પીવી હતી એટલે બનાવી દીધી. બાકી ચા અમે વેચતા નથી એટલે એના પૈસા અમે નો લઈએને પેલી સ્ત્રી મક્કમતાથી બોલી. અને સુકેતુ એકદમ પથ્થરનું પુતળું બની ગયો. નેહલે પણ વાત સાંભળી અને એપણ દુકાન પાસે આવી ગઈ.
હવે તમે આ છોકરા માટે દૂધનું શું કરશો?? આટલામાં દૂધ ક્યાંથી મળશે??”
તે એક દિવસ દૂધ નહિ મળે તો છોકરો કાઈ મરી નહિ જાય!! આ તો એના બાપા બીમાર છે નહીતર એ સાયકલ લઈને નજીકના શેરમાંથી દૂધ લઇ આવે..પણ એને તાવ આવે છે કાલનો પણ આજ રાતે મટી જાશે એટલે કાલ સવારે એ દૂધ લઇ આવશે. આ તો તમે માંગી ચા એટલે બનાવી દીધીપેલી સ્ત્રી બોલી અને આ વાત સુકેતુના કાળજામાં ઉતરી ગઈ. નેહલ પણ ઘડીભર કાઈ બોલી ન શકી. છેલ્લે સુકેતુ બોલ્યો!!
અમે ડોકટર છીએ ક્યાં છે આ છોકરાના બાપા? ”
એ અંદર છે આવોસ્ત્રી બોલી અને બને ડોકટર દંપતી અંદર ગયા. કાચા ઓરડામાં ગરીબાઈ આંટા લઇ ગઈ હતી. ચુલા પર અગ્નિ સળગતો હતો. તપેલી હજુ નીચે જ પડી હતી. જેમાં તેમના માટે આદુ અને તુલસી વાળી ચા બની હતી. એક ભાંગલા તૂટલાં ખાટલામાં એક નંખાઈ ગયેલો દેહ પડ્યો હતો. સુકેતુએ એ દર્દીના માથે હાથ ફેરવ્યો!! આખું માથું અને શરીર ધગી રહ્યું હતું. પોતાની ગાડીમાંથી એ તાવની દવા લઇ આવ્યો. એક બોટલ પણ આપી. નેહલ હેઠી બેસી ગઈ હતી. સુકેતુ દર્દીને તપાસી રહ્યો હતો. થોડી વાર પછી એ બોલ્યો.
બહેન આ ટેબ્લેટસ થી કદાચ તાવ નહિ ઉતરે. બોટલ ચડાવવી પડશે. બીજા ઇન્જેક્શન આપવા પડશે. એક કામ કરું હું શહેરમાંથી બોટલ અને જરૂરી ઇન્જેક્શન લેતો આવું છું. નેહલ તું અહી બેસ આ બહેન પાસેકહીને જવાબની અપેક્ષા રાખ્યા વગર જ એ પોતાની કાર લઈને ઉપડ્યો. અર્ધી કલાક પછી એ ઇન્જેક્શન અને બાટલા પણ લાવ્યો.સાથે દુધની પાંચ કોથળી અને સફરજન પણ લેતો આવ્યો. સ્ત્રીના પતિને ઇન્જેક્શન આપ્યાં અને બોટલ શરુ કરી. દુધની લાવેલ કોથળીમાંથી એક કોથળીની ચા પેલી સ્ત્રીએ બનાવી અને ફરથી સુકેતુ અને નેહલે ચા પીધી. પેલી સ્ત્રી અને એના પતિએ ડોકટરની સામે હાથ જોડ્યા!! પૈસા આપવાની કોશિશ કરી પણ નેહલ અને સુકેતુની આંખમાં આંસુ જોઈ ને એણે વધારે આગ્રહ ન કર્યો. વાતાવરણમાં એક મધુર પ્રસન્નતા છવાઈ ગઈ હતી. અને ફરીથી કાર ઉપડી મધ્યપ્રદેશની બોર્ડર પર!! વરસાદ રોકાઈ ગયો હતો. થોડીવાર પછી નેહલ બોલી.
આગળ કોઈ જગ્યાએ તમને ભાવે એ ખાઈ લેજો. હું તો બે કપ ચા પીને ધરાઈ ગઈ છું.
મને પણ ભૂખ નથી. આવી ચા જીંદગીમાં ક્યારેય પીધી નથીસુકેતુ બોલ્યો અને નેહલ તેની સામે મીઠું હસી. ગાડી આગળ ચાલી રહી હતી.
ત્રણ દિવસ મધ્યપ્રદેશમાંથી ફરીને તેઓ પાછા આવ્યાં હતા. ફરીથી એ પેલી દુકાન આગળ ઉભા રહ્યા હતા. નાના છોકરાઓ માટે એ ઘણા બધા રમકડા લાવ્યા હતા. સાથે દુધની કોથળીઓ પણ હતી. પેલી સ્ત્રીનો પતિ સાવ સાજો થઇ ગયો હતો. બને ખુબજ ભાવુક થઇ ગયા હતા. પોતાનું કાર્ડ આપ્યું અને ઘરે આવવા આમંત્રણ આપ્યું. ફરી એક વાર ચા પીને તેઓ પોતાના શહેર તરફ ચાલ્યાં.
સોમવારે દવાખાનું ખોલ્યું અને કેઈસ લખવા વાળાને બોલાવીને કીધું કે હવે તમારે દર્દીના ફક્ત નામ જ લખવાના છે. કેસ ફીના પૈસા દર્દી મારી પાસે આવશે ત્યારે હું લઇ લઈશ.
અને પછી સુકેતુ અને નેહલે સેવા શરુ કરી દીધી. ગરીબ અને જરુરીયામંદની તેઓ કશી જ ફી ના લેતા હા સુખી સંપન્ન હોય એની રાબેતા મુજબ ફી લેતા!! થોડાક સમયમાં જ આખા શહેરમાં આ ખબર ફેલાઈ ગઈ. ડોકટર એશોશિએશનના પ્રમુખ શર્મા તેમને મળવા ઘરે આવ્યા અને કહ્યું.
કેમ મોટો એવોર્ડ લેવો છે કે મહાન થઇ જવું છે?? તમે જે આ પ્રવૃત્તિ આદરી છે એ બીજા ડોકટરને હલકા દેખાડવા માટે છે. આ આપણા સંગઠન નાં નિયમ વિરુદ્ધ છેસુકેતુ અને નેહલે તેને બધી જ વાત કરી અને છેલ્લે સુકેતુ બોલ્યો એ ડોકટર શર્માના અંતરમાં કોતરાઈ ગયું. સુકેતુ એ કહેલું.
 જ્યારથી ભણતો આવ્યો છું ત્યારથી પહેલો નંબર લાવતો આવ્યો છું. મેડીકલ માં પણ કોલેજ પ્રથમ હતો. પણ તે દિવસે જીવનમાં સભ્યતા ની બાબતમાં એ સ્ત્રી મારી કરતાં આગળ નીકળી ગઈ!! પોતાના છોકરા માટે રાખેલ દુધની ચા બનાવીને પાઈ દીધી એ પણ સાવ નિસ્વાર્થ ભાવે!! હવે તમે જ વિચારો કે આ સુકેતુ પટેલ ગોલ્ડ મેડાલીસ્ટ સભ્યતા ની બાબતમાં પ્રથમ નંબર ના લાવી શકે!! હું તો ભણેલ ગણેલ સાધન સંપન્ન આદમી શું હું પેલી સ્ત્રી ની સભ્યતા ની આગળ હું ઉણો ઉતરું?? ક્યારેય નહિ હું કોઈ કાળે સભ્યતા ની બાબતમાં ક્યારેય ઓછો ઉતરીશ નહિ!! હું તો ઈચ્છું કે તમામ ડોકટરો આનું અનુસરણ કરે તો આ પવિત્ર વ્યવસાય પુરેપુરો ખીલી જશે અને ડોકટર શર્મા ને આ ડોકટર દંપતી પર આજે ખુબ જ ગર્વ થયો.
અત્યારે ઘણી બધી હોડ ચાલે છે. કોઈને પછાડવા ની તો કોઈને જડમુળ થી ટાળી દેવાની હોડ !! પણ જે દિવસથી આ જગત માં સભ્યતા ની બાબતમાં શ્રેષ્ઠ બનવાની હોડ ચાલશે તેજ દિવસથી જગત ખરેખર નંદનવન બની જશે .
સંકલિત...આ વાર્તા ના લખનાર શ્રી મુકેશભાઈ સોજીત્રા છે....તેમના આભાર સહ....તેમની કોમેન્ટ આવવાથી આ સુધારો કરેલ છે...અગાઉ "સંકલિત" થીજ પોસ્ટ કરેલ ફરી મુકેશ ભાઈ નો આભાર,,,,૧૨.૧૧.૨૦૨૨