०८.०८.२०१५...
These three
poets are legendary in Urdu literature .
ग़ालिब(1797 -1869)
इक़बाल(1877-1938)
फ़राज़(1931-2008)
Ghalib started
it in the 19th century .
“ज़ाहिद, शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर...
या वो जगह बता, जँहा खुदा नहीं”
Allama Iqbal
was not convinced. He decided to reply about half a century later, his poetic
reply to Ghalib.
“मस्जिद खुदा का घर है, पीने की जगह नहीं...
काफ़िर के दिल में जा, वांहा खुदा नहीं”
Faraz had the
last word. (Later half of 19th century) .
“काफ़िर के दिल से आया हूँ, मैं ये देख कर फ़राज़...
खुदा मौजूद है वहाँ, पर उसे पता नहीं”
The elegance of
urdu at its best !!
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: • जो
ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो .
• मैंने
ये सोच के तस्बी तोड़ दी फ़राज़
क्या गिन गिन के याद करू उसे जो बेहिसाब देता हे.
• बंदगी
हमने छोड़ दी फ़राज़
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएँ
• नींद
तो क्या आयेगी "फ़राज़"
मौत आई तो सो लेंगे
---अहमद फराज
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