૦૨.૧૧.૨૦૧૦
हर कोई अपने आप में पूर्ण है
हमारा मानना है कि हर व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा,बलवान हो या निर्बल,विद्वान या अनपढ़,शरीर-सम्पन्न या विकलांग अपने आप में पूर्णता लिए हुए है Iअपने आप में महान है I
जिन्हें हो शक वो करें और खुदाओ कि तलाश
हम तो इंसान को ही दुनिया का खुदा कहते है I
अमरीका के एक प्रख्यात लेखक डेल कार्नेगी का कहना है कि हो सके तो पर्वत कि चोटी बनिए,पर यदि पर्वत कि चोटी न बन पाए तो उस छोटी पर उगनेवाले देवदार के वृक्ष बनिए I यदि देवदार भी नहीं बन पाएं तो घाटी में या किसी झरने के पास एक छोटा- सा सुन्दर वृक्ष बनिए I यदि वृक्ष ना बन पाएं तो एक झाड़ी ही बनिए अगर झाड़ी भी न बन पाएं तो वह नरम घास बनिए जो किसी के मार्ग पर बिछाकर उसके मार्ग को सुखद वनता हे I और यदि आप मार्ग नहीं बन सकते तो एक पगडंडी बनिए I I
आकार से ही हमारी सफलता या असफलता का निर्धारण नहीं होता I अपनी योग्यता के अनुसार ही हम श्रेष्ट बनते है I दुसरो की बराबरी या नक़ल करना आवश्यक नहीं I हम जो भी बन सकते है, वही बने रहे,इसी में ही हमारी शोभा है I
३(अभिताभ का खजाना... ....से)
हर कोई अपने आप में पूर्ण है
हमारा मानना है कि हर व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा,बलवान हो या निर्बल,विद्वान या अनपढ़,शरीर-सम्पन्न या विकलांग अपने आप में पूर्णता लिए हुए है Iअपने आप में महान है I
जिन्हें हो शक वो करें और खुदाओ कि तलाश
हम तो इंसान को ही दुनिया का खुदा कहते है I
अमरीका के एक प्रख्यात लेखक डेल कार्नेगी का कहना है कि हो सके तो पर्वत कि चोटी बनिए,पर यदि पर्वत कि चोटी न बन पाए तो उस छोटी पर उगनेवाले देवदार के वृक्ष बनिए I यदि देवदार भी नहीं बन पाएं तो घाटी में या किसी झरने के पास एक छोटा- सा सुन्दर वृक्ष बनिए I यदि वृक्ष ना बन पाएं तो एक झाड़ी ही बनिए अगर झाड़ी भी न बन पाएं तो वह नरम घास बनिए जो किसी के मार्ग पर बिछाकर उसके मार्ग को सुखद वनता हे I और यदि आप मार्ग नहीं बन सकते तो एक पगडंडी बनिए I I
आकार से ही हमारी सफलता या असफलता का निर्धारण नहीं होता I अपनी योग्यता के अनुसार ही हम श्रेष्ट बनते है I दुसरो की बराबरी या नक़ल करना आवश्यक नहीं I हम जो भी बन सकते है, वही बने रहे,इसी में ही हमारी शोभा है I
३(अभिताभ का खजाना... ....से)
No comments:
Post a Comment