Thursday, July 19, 2012

અલવીદા........કાકા.....

૧૯.૦૭.૨૦૧૨
અલવીદા........કાકા......અભિનેતા-સુપર સ્ટાર રાજેશ ખન્ના નું ગઈ કાલે નિધન થયું,......શ્રદ્ધાંજલિ..........
मौत तू एक कविता है / गुलज़ार
मौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुँचे
         
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
         
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
(इस कविता को हिन्दी फ़िल्म "आनंद" में डा. भास्कर बैनर्जी नामक चरित्र के लिये लिखा गया था .) 
मुझको इतनी मोहब्बत न दो दोस्तों 

मुझको इतनी मोहब्बत न दो दोस्तों 
मुझको इतनी मोहब्बत न दो दोस्तों 
सोच लो दोस्तों 
इस कदर प्यार कैसे संभालूँगा मैं 
मैं तो कुछ भी नहीं 

प्यार .. प्यार इक शख्स का भी अगर मिल सके तो बड़ी चीज़ है ज़िन्दगी के लिए 
आदमी को मगर ये भी मिलता नहीं ये भी मिलता नहीं . 

मुझको इतनी मोहब्बत मिली आपसे .. मुझको इतनी मोहब्बत मिली आपसे .. ये मेरा हक़ नहीं मेरी तकदीर है 
मैं ज़माने की नज़रों मैं कुछ भी न था .. मैं ज़माने की नज़रों मैं कुछ भी न था 
मेरी आँखों मैं अब तक वोह तस्वीर है . 

इस मोहब्बत के बदले , मैं क्या नज़र दूं 
मैं तो कुछ भी नहीं .

इज्ज़तें शोहरतें चाहतें उल्फतें 
कोई भी चीज़ दुनिया मैं रहती नहीं 
आज मैं हूँ जहाँ कल कोई और था .. आज मैं हूँ जहाँ कल कोई और था 
ये भी एक दौर है वो भी एक दौर था

आज इतनी मोहब्बत न दो दोस्तों .. आज इतनी मोहब्बत न दो दोस्तों 
क़ि मेरे कल की खातिर न कुछ भी रहे 
आज का प्यार थोडा बचा कर रखो.. आज का प्यार थोडा बचा कर रखो 
मेरे कल के लिए 
कल कल जो गुमनाम है .. कल जो सुनसान है .. कल जो अनजान है ..कल जो वीरान है 

मैं तो कुछ भी नहीं हूँ ..मैं तो कुछ भी नहीं हूँ 







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