૨૯/૦૮/૨૦૧૭..(૮૩)..भीष्म पितामह
पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था
સંકલિત...... ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ
पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था
कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया
और
जटायु
के जीवन का एक ही पुण्य था
कि
उसने समय पर क्रोध किया
"परिणामस्वरुप
एक को बाणों की शैय्या मिली
और एक
को प्रभु श्री राम की गोद
वेद कहता है--
"क्रोध
भी तब पुण्य बन जाता है,
जब वह
"धर्म" और "मर्यादा" के लिए किया जाए,
और
"सहनशीलता"
भी तब पाप बन जाती है
जब वह
"धर्म" और "मर्यादा" को बचा नहीं पाती ।।
द्रोपदी जैसी सन्नारी पर एक आरोप ये भी है कि जब
महाभारत युद्घ के पश्चात पाण्डवों को मृत्यु
शय्या पर पड़े भीष्म ने उपदेश दिये तो उस समय द्रोपदी ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए पितामह से
कहा कि आपके ये उपदेश उस समय कहां गये थे जब मेरा चीरहरण किया जा रहा था। कहा जाता
है कि द्रोपदी के इस प्रश्न पर पितामह भीष्म ने कह दिया था कि बेटी उस समय मैंने दुर्योधन का
दूषित अन्न खा रखा था, इसलिए मेरी बुद्घि में उस समय दोष था। पर अब इतने लंबे समय तक
बाणों की शय्या पर रहने से मेरा दूषित रक्त बह गया है, अत: अब मेरी बुद्घि भी निर्मल हो गयी है।
शय्या पर पड़े भीष्म ने उपदेश दिये तो उस समय द्रोपदी ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए पितामह से
कहा कि आपके ये उपदेश उस समय कहां गये थे जब मेरा चीरहरण किया जा रहा था। कहा जाता
है कि द्रोपदी के इस प्रश्न पर पितामह भीष्म ने कह दिया था कि बेटी उस समय मैंने दुर्योधन का
दूषित अन्न खा रखा था, इसलिए मेरी बुद्घि में उस समय दोष था। पर अब इतने लंबे समय तक
बाणों की शय्या पर रहने से मेरा दूषित रक्त बह गया है, अत: अब मेरी बुद्घि भी निर्मल हो गयी है।
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