૧૬/૦૮/૨૦૧૭..(૭૭)..प्रेम--OSHO
સંકલિત...... ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ
प्रेम लौटता ही
है। हजार गुना होकर
लौटता है।
इसकी भी फिकर मत
करोकि इस आदमी को
दिया तो यही लौटाए।
कहीं से लौट आएगा, हजार गुना होकर
लौट आएगा,
तुम फिकर मत करो। प्रेम लौटता ही
है।
अगर न लौटे, तो सिर्फ एक
प्रमाण होगा
कि तुमने दिया ही
न होगा। अगर न लौटे, तो फिर से सोचना,
तुमने दिया था? या सिर्फ धोखा
किया था?
देने का दिखावा
किया था या दिया था?
अगर दिया था तो
लौटता ही है। यह इस जगत का
नियम है।
जो तुम देते हो, वही लौट आता है घृणा तो घृणा, प्रेम तो प्रेम,
अपमान तो अपमान, सम्मान तो सम्मान। तुम्हें वही मिल जाता है,
अपमान तो अपमान, सम्मान तो सम्मान। तुम्हें वही मिल जाता है,
हजार गुना होकर,जो तुम देते हो।
यह जगत प्रतिध्वनि करता
है,
अगर तुम गीत
गुनगुनाते हो तो गीत लौट आता
है।
अगर तुम गाली
बकते हो तो गाली लौट आती
है।
जो लौटे, समझ लेना कि,
वही तुमने दिया
था।
जो बोओगे,वही काटोगे भी।
- OSHO (एस धम्मो सनंतनो)
अगर
तुम बहुत गहरे प्रेम में हो!
तो तुम मौन हो जाओगे; तब तुम अपनी प्रेमिका से बोल न सकोगे। और यदि बोलोगे भी तो नाम मात्र के लिए ही। बातचीत संभव नहीं है। प्रेम जब गहराता है तब शब्द व्यर्थ हो जाते हैं, तुम चुप हो जाते हो। अगर तुम अपनी प्रेमिका के साथ मौन नहीं रह सकते हो तो भलीभांति समझ लो कि प्रेम नहीं है। क्योंकि जिससे तुम्हें प्रेम नहीं है उसके पास चुप रहना बहुत कठिन होता है। किसी अजनबी के साथ तुम तुरंत बातचीत में लग जाते हो।
अजनबी के साथ में चुप बैठना कठिन मालूम होता है। चूंकि और कोई दूसरा सेतु नहीं बन पाता इसलिए तुम भाषा का सेतु निर्मित कर लेते हो। अजनबी के साथ आंतरिक सेतु संभव नहीं है। तुम अपने में बंद हो; वह अपने में बंद है। मानो दो बंद घेरे अगल बगल में बैठे हों। और डर है कि कहीं वे आपस में टकरा न जाएं, कोई खतरा न हो जाए। इसलिए तुम सेतु बना लेते हो, इसलिए तुम बातचीत करने लगते हो, इसलिए तुम मौसम या किसी भी चीज पर बातचीत करने लगते हो, वह कोई भी बेकार की बात हो सकती है। लेकिन उससे तुम्हें एहसास होता है कि तुम जुड़े हो और संवाद चल रहा है।
किन्तु प्रेमी मौन हो जाते हैं। और जब दो प्रेमी फिर बातचीत करने लग जाएं तो समझ लेना कि प्रेम विदा हो चुका है, कि वे फिर अजनबी हो गए हैं। जाओ और पति पत्नियों को देखो, जब वे अकेले होते हैं तो वे किसी भी चीज के बारे में बातचीत करते रहते हैं। और वे दोनों जानते हैं कि बातचीत गैर जरूरी है। लेकिन चुप रहना कठिन है! इसलिए किसी क्षुद्र सी बात पर भी बात किए जाते है, ताकि संवाद चलता रहे।
लेकिन दो प्रेमी मौन हो जाएंगे। भाषा खो जाएगी; क्योंकि भाषा बुद्धि की चीज है। शुरुआत तो बच्चों जैसी बातचीत से होगी, लेकिन फिर वह नहीं रहेगी। तब वे मौन में संवाद करेंगे। उनका संवाद क्या है? उनका संवाद अतर्क्य है, वे अस्तित्व के एक भिन्न आयाम के साथ लयबद्ध हो जाते हैं। और वे उस लयबद्धता में सुखी अनुभव करते हैं। और अगर तुम उनसे पूछो कि उनका सुख क्या है, तो वे उसे प्रमाणित नहीं कर सकते। अब तक कोई प्रेमी प्रमाणित नहीं कर सका है कि प्रेम में उन्हें सुख क्यों होता है? प्रेम तो बहुत पीड़ा है, बहुत दुख लाता है, तथापि प्रेमी सुखी है। प्रेम में एक गहरी पीड़ा है। क्योंकि जब तुम किसी से एक होते हो तो उसमें अड़चन आती है। अगर उसमे प्रेम नही है तो सिर्फ प्रश्न होंगे। वह बिना प्रेम में हुए ही! प्रेम को साबित करने में लग जाता है। और यही दुःख देता है। प्रेम में तो दो मन एक हो जाते हैं; यह केवल दो शरीरों के एक होने की बात नहीं है। यह दो आत्माओं का मिलान है !
तो तुम मौन हो जाओगे; तब तुम अपनी प्रेमिका से बोल न सकोगे। और यदि बोलोगे भी तो नाम मात्र के लिए ही। बातचीत संभव नहीं है। प्रेम जब गहराता है तब शब्द व्यर्थ हो जाते हैं, तुम चुप हो जाते हो। अगर तुम अपनी प्रेमिका के साथ मौन नहीं रह सकते हो तो भलीभांति समझ लो कि प्रेम नहीं है। क्योंकि जिससे तुम्हें प्रेम नहीं है उसके पास चुप रहना बहुत कठिन होता है। किसी अजनबी के साथ तुम तुरंत बातचीत में लग जाते हो।
अजनबी के साथ में चुप बैठना कठिन मालूम होता है। चूंकि और कोई दूसरा सेतु नहीं बन पाता इसलिए तुम भाषा का सेतु निर्मित कर लेते हो। अजनबी के साथ आंतरिक सेतु संभव नहीं है। तुम अपने में बंद हो; वह अपने में बंद है। मानो दो बंद घेरे अगल बगल में बैठे हों। और डर है कि कहीं वे आपस में टकरा न जाएं, कोई खतरा न हो जाए। इसलिए तुम सेतु बना लेते हो, इसलिए तुम बातचीत करने लगते हो, इसलिए तुम मौसम या किसी भी चीज पर बातचीत करने लगते हो, वह कोई भी बेकार की बात हो सकती है। लेकिन उससे तुम्हें एहसास होता है कि तुम जुड़े हो और संवाद चल रहा है।
किन्तु प्रेमी मौन हो जाते हैं। और जब दो प्रेमी फिर बातचीत करने लग जाएं तो समझ लेना कि प्रेम विदा हो चुका है, कि वे फिर अजनबी हो गए हैं। जाओ और पति पत्नियों को देखो, जब वे अकेले होते हैं तो वे किसी भी चीज के बारे में बातचीत करते रहते हैं। और वे दोनों जानते हैं कि बातचीत गैर जरूरी है। लेकिन चुप रहना कठिन है! इसलिए किसी क्षुद्र सी बात पर भी बात किए जाते है, ताकि संवाद चलता रहे।
लेकिन दो प्रेमी मौन हो जाएंगे। भाषा खो जाएगी; क्योंकि भाषा बुद्धि की चीज है। शुरुआत तो बच्चों जैसी बातचीत से होगी, लेकिन फिर वह नहीं रहेगी। तब वे मौन में संवाद करेंगे। उनका संवाद क्या है? उनका संवाद अतर्क्य है, वे अस्तित्व के एक भिन्न आयाम के साथ लयबद्ध हो जाते हैं। और वे उस लयबद्धता में सुखी अनुभव करते हैं। और अगर तुम उनसे पूछो कि उनका सुख क्या है, तो वे उसे प्रमाणित नहीं कर सकते। अब तक कोई प्रेमी प्रमाणित नहीं कर सका है कि प्रेम में उन्हें सुख क्यों होता है? प्रेम तो बहुत पीड़ा है, बहुत दुख लाता है, तथापि प्रेमी सुखी है। प्रेम में एक गहरी पीड़ा है। क्योंकि जब तुम किसी से एक होते हो तो उसमें अड़चन आती है। अगर उसमे प्रेम नही है तो सिर्फ प्रश्न होंगे। वह बिना प्रेम में हुए ही! प्रेम को साबित करने में लग जाता है। और यही दुःख देता है। प्रेम में तो दो मन एक हो जाते हैं; यह केवल दो शरीरों के एक होने की बात नहीं है। यह दो आत्माओं का मिलान है !
~ओशो-
ઈજિપ્તમાં એક જૂની કહેવત છે કે જે વસ્તુ માણસથી
છુપાવવી હોય,
તે
તેની આંખની સામે મૂકી દો;
પછી તે
એને જોઈ નહીં શકે.
તમને યાદ છે, કેટલા દિવસોથી તમારી પત્નીનો ચહેરો તમે નથી
જોયો ?
ખ્યાલ છે તમને કે તમારી માતાની આંખમાં આંખ
પરોવીને ક્યારથી તમે નથી જોયું ?
પત્ની એટલી મોજૂદ છે, માતા એટલી નજીક છે, પછી જોવાનું શું ?
પત્ની મરી જાય છે, તો ખબર પડે છે કે એ હતી.
પતિ જઈ ચૂક્યો હોય છે ત્યારે યાદ આવે છે કે અરે,
આ માણસ આટલો વખત સાથે
રહ્યો, પરંતુ પરિચય જ ન
થયો !
આથી તો લોકો સ્વજનના મરણ ઉપર આટલું રુદન કરે
છે.
તે રડે છે એ મરણને કારણે નહીં, પણ એટલા માટે કે આટલા દિવસોથી જેની સાથે હતા
તેને આંખ ભરીને જોયા પણ નહીં;
તેની ધડકનો સાંભળી ન શક્યા, એની સાથે કોઈ પરિચય થઈ ન શક્યો;
તે અજાણ્યા જ રહ્યા ને અજાણ્યા જ વિદાય થઈ ગયા
!
અને હવે તેનો કોઈ ઉપાય નથી.
તમારું સ્વજન ચાલ્યું જાય ત્યારે તમે એટલા માટે
રડો છો કે એક તક મળી હતી અને ચૂકી ગયા;
તેને
આપણે પ્રેમ પણ ન કરી શક્યા. ઈજિપ્તના ફકીરો એટલે એ વાત કહેતા હતા કે કોઈ ચીજને
છુપાવવી હોય તો તેને લોકોની આંખો સામે મૂકી દો.
ચીજ જેટલી નજીક હોય છે, એટલી જ વધુ નજર બહાર નીકળી જાય છે.
રજનીશજી
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