Saturday, June 24, 2017

.(35)..हीरा...

24/06/2017...(35)..हीरा


                                    સંકલિત......                              ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ....

एक राजमहल में कामवाली और उसका बेटा काम करते थे!
एक दिन राजमहल में कामवाली के बेटे को हीरा मिलता है।
वो माँ को बताता हैकामवाली होशियारीसे वोहीरा बाहर फेककर कहतीहै,ये कांचहै हीरा नहीं.कामवाली घर जाते वक्त चुपकेसे वो हीरा उठाके ले जाती है।
वह सुनारके पास जाती हैसुनार समझ जाता है इसको कही मिला होगा,ये असली या नकली पता नही इसलिए पुछनेआ गई.
सुनार भी होशियारीसें वो हीरा बाहर फेंक कर कहता है!! ये कांच है हीरा नहीं।
कामवाली लौट जाती है। सुनार वो हीरा चुपके से उठाकर जौहरी के पास ले जाता है, जौहरी हीरा पहचान लेता है।
अनमोल हीरा देखकर उसकी नियत बदल जाती है।
वो भी हीरा बाहर फेंक कर कहता है ये कांच है हीरा नहीं।
जैसे ही जौहरी हीरा बाहर फेंकता है
उसके टुकडे टुकडे हो जाते है
यह सब एक राहगीर निहार रहा थावह हीरे के पास जाकर पूछता हैकामवाली और सुनार ने दो बार तुम्हे फेंकातब तो तूम नही टूटे फिर अब कैसे टूटे?
हीरा बोला….कामवाली और सुनारने दो बार मुझे फेंका
क्योंकि वो मेरी असलियत से अनजान थे।
लेकिन…. जौहरी तो मेरी असलियत जानता था
तब भी उसने मुझे बाहर फेंक दियायह दुःख मै सहन न कर सकाइसलिए मै टूट गया …..ऐसा ही हम मनुष्यों के साथ भी होता है !
संकलित




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