Monday, June 19, 2017

(૩૧)...कृष्ण और राधा

               ૧૯/૦૬/૨૦૧૭..(૩૧)...कृष्ण और राधा...


                                             સંકલિત......                              ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ.... 
कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए  अचानक एक दुसरे के सामने आ गए विचलित से कृष्ण- प्रसन्नचितसी राधा...कृष्ण सकपकाए, राधा मुस्काई इससे पहले कृष्ण कुछ कहते  राधा बोल उठी- "कैसे हो द्वारकाधीश ??"जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया और बोले राधा से."मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ तुम तो द्वारकाधीश मत कहो! आओ बैठते है.कुछ मै अपनी कहता हूँ  कुछ तुम अपनी कहो सच कहूँ राधा  जब जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखोंसे आँसुओंकी बुँदे निकल आती थी."बोली राधा- "मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते इन आँखोंमें सदा तुम रहते थे.
कहीं आँसुओंके साथ निकलना जाओ इसलिए रोतेभी नहींथे प्रेमके अलग होने पर तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको?कुछ कडवे सच,प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए यमुना के मीठे पानीसे जिंदगी शुरूकी और समुन्द्रके खारे पानीतक पहुच गए?   एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया
और दसों उँगलियों पर चलने वाळी बांसुरीको भूल गए?            कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो.जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचातीथी प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली क्या क्या रंग दिखाने लगीसुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी कान्हा और द्वारकाधीश में क्या फर्क होता है बताऊँ?कान्हा होतेतो तुम सुदामाके घर जाते सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता युद्धमें और प्रेममें यहीतो फर्क होता है युद्धमें आप मिटाकर जीतते हैं और प्रेममें आप मिटकर जीततेहैं कान्हा प्रेममें डूबा हुआ आदमी दुखीतो रह सकता है पर किसीको दुःख नहीं देता आपतो 
कईकलाओंके स्वामीहो स्वप्न दूर द्रष्टाहो गीता जैसे ग्रन्थके दाता हो पर आपने क्या निर्णय किया अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दीऔर अपने आपको पांडवोंके साथ कर लिया ? सेनातो आपकी प्रजाथी राजातो पालाक होताहै उसका रक्षक होताहै आप जैसा महा ज्ञानी उस रथको चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन आपकी प्रजाको ही मार रहाथा आपनी प्रजाको मरते देख आपमें करूणा नहीं जगी ?

क्यूंकि आप प्रेमसे शून्य हो चुके थे आज भी धरती पर जाकर देखो
अपनी द्वारकाधीश वाळी छविको ढूंढते रह जाओगे
हर घर हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे
आज भी मै मानती हूँ लोग गीताके ज्ञानकी बात करते हैं
उनके महत्वकी बात करते है मगर धरतीके लोग युद्धवाले द्वारकाधीश पर नहीं,प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं
गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है,
पर आजभी लोग उसके समापन पर"राधे राधे"करते है"
संकलित

એક કવિએ રાધાને કહ્યું ....

બધાજ કૃષણપર ભજન લખેછે લાવ હુંતારા પર ભજન લખું જયાં 

કાનાનું એકપણ વાર નામ ન આવે....

ત્યારે રાધાઅએ કવિને હસીને કહયું કે ...એ શકય જ નથી કારણ કે--

કવિરાજ તમે જ કહો--કાના વગર રાધા લખો શી રીતે રને કાનો રા ધને કાનો ધા

એક વખત રાધા લખવા બે વખત કાનો જોઈએ !     



સંકલિત...







No comments: