૦૯-૦૬-૨૦૧૭... બોધ કથા-૨૪........देनहार कोऊ और है.....रहीम....
करोड़ों रुपये आए-गए उनके हाथ में, लेकिन जो आया--बांटा।
बांटने में कभी रुके नहीं।
ऐसा बांटा कि शायद अकबर भी थोड़ार् ईष्यालु हो उठता था।
कहते हैं गंग कवि ने एक दोहा कहा।
वे इतने खुश हो गए रहीम, कि छत्तीस लाख रुपये एक-दो कड़ियों के लिए बोरों में
बंधवाकर चुपचाप रातोंरात गंग कवि के घर भेज दिए, किसी को पता न चले।
गंग बहुत हैरान हुआ तो गंग ने एक पद लिखा।
लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन
लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन
इसलिए आंखें संकोच से नीची कर लेते हैं कि लोग बड़ी गलत बात सोच रहे हैं कि
સંકલિત...... ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ....
रहीम खानखाना अकबर के नौ रत्नों में एक
थे।
अकबर उनसे बड़ा खुश था और बहुत जमीन-जायदादें दीं।
करोड़ों रुपया उन्हें भेंट किया।
वह जैसा उनके पास पैसा आता था ऐसे ही वे लुटा भी
देते थे। मरे तो भिखारी थे।
अकबर उनसे बड़ा खुश था और बहुत जमीन-जायदादें दीं।
करोड़ों रुपया उन्हें भेंट किया।
वह जैसा उनके पास पैसा आता था ऐसे ही वे लुटा भी
देते थे। मरे तो भिखारी थे।
करोड़ों रुपये आए-गए उनके हाथ में, लेकिन जो आया--बांटा।
बांटने में कभी रुके नहीं।
ऐसा बांटा कि शायद अकबर भी थोड़ार् ईष्यालु हो उठता था।
कहते हैं गंग कवि ने एक दोहा कहा।
वे इतने खुश हो गए रहीम, कि छत्तीस लाख रुपये एक-दो कड़ियों के लिए बोरों में
बंधवाकर चुपचाप रातोंरात गंग कवि के घर भेज दिए, किसी को पता न चले।
गंग बहुत हैरान हुआ तो गंग ने एक पद लिखा।
सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी
देनी देन
ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करौ
त्यों-त्यों नीचे नैन
यह देना कहां से
सीखे? सीखे कहां नबाबज्यू? यह नबाबी कहां सीखी?
यह सम्राट होना कहां सीखा? सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी देनी देन देनेवाले बहुत देखे,
यह सम्राट होना कहां सीखा? सीखे कहां नबाबज्यू ऐसी देनी देन देनेवाले बहुत देखे,
लेकिन रात चोरी से अंधेरे में...। अंधेरे में तो लोग चुराने आते हैं,
देने कोई आता है? किसी को पता न
चले--ऐसी देनी देन।
ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करौ
त्यों-त्यों नीचे नैन
देनेवाला तो अकड़कर
खड़ा हो जाता है। सारे संसार को दिखलाना चाहता है। और तुम,
जैसे-जैसे तुम्हारा हाथ ऊंचा होता जाता है, देने की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे
आंख नीची होती जाती है। रहीम ने इसके उत्तर
में एक दोहा लिखा:
देनहार कोऊ और है भेजत
सो दिन-रैन
लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन
देनेवाला कोई और है, जो दिन-रात भेज रहा है और लोग शक हम पर करते हैं;
इसलिए आंखें नीची हैं। इसलिए देने में संकोच है। क्योंकि लोग सोचेंगे, हमने दिया।
कोई भेजे चला जा रहा है। हमारा किया कुछ भी नहीं है। कोई कर रहा
है।
लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन
इसलिए आंखें संकोच से नीची कर लेते हैं कि लोग बड़ी गलत बात सोच रहे हैं कि
हम दे रहे हैं। देनेवाला
कोई और है।
संकलित
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