Tuesday, September 26, 2017

(૧૦૫)..गहरी बात

૨૬/૦૯/૨૦૧૭..(૧૦૫)..गहरी बात

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में।
उसी दहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।।
सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे।
बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है।।
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार।
पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।।
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए।
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई को बदलते देखा है।।
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को।
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।।
जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन।
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है।।
जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी।
आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है।।
दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था  जिस बेटी को जबरन बाप ने।
आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है।।
मारा गया वो पंडित बे मौत सड़क दुर्घटना में यारो।
जिसे खुद को काल, सर्प, तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है।।
जिसे घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों।
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।।
बन्द कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर।
अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।।
आत्म हत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर।
अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।।
गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है उन्होंने देख लिया कि।
इंसान हमसे अच्छा नोंचता  है।।
कुत्ते कोमा में चले गए, ये देखकर।
क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान देखा है।।

 સંકલિત...

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