૨૭/૦૯/૨૦૧૭..(૧૦૬)..ઊર્મિલા
સંકલિત...... ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ
उर्मिला- राम काव्य परम्परा में उर्मिला के चरित्र का सफल रेखांकन ‘साकेत’ और ‘उर्मिला’ में मिलता है, जिसमें उसके उपेक्षित व्यक्तित्व को उभारा गया है । ‘साकेत’ का नवम् सर्ग उर्मिला के विरह-विषाद की चरम निदर्शना है । वह अपने मन-मन्दिर में प्रिय की प्रतिभा स्थापित कर सम्पूर्ण भोगों को त्याग कर अपना जीवन योगमय बना लेती है, यथा-
સંકલિત...... ચિત્ર સૌજન્ય:ઈન્ટરનેટ
जब
तक मंथरा एवं कैकय की मौजुदगी रहेगी और साथ में द्रौपदी की जीवा जैसी मानशिकता
रहेगी तब तक हमें आत्ममंथन करना होगा, क्योंकि अभी भी समाज में राम भी है, रावण भी है
और दुर्योधन भी है.....
આ
બાબત સંલગ્ન નથી કિન્તુ વાતો હમેશા સીતાજી, દ્રૌપદી
ની થયા કરે છે માટે ઉમેરો કરવો પડે છે..........
ઊર્મિલા
રામાયણ માં એક ઉપેક્ષિત પાત્ર છે.
આપણે
અંગ્રેજીમાં KNIFE લખીએ
તો એમાં K ની
કોઈ કિંમત નથી, એવી
રીતે. ઊર્મિલાના ઉપેક્ષિત પાત્ર વિષે જાણવા જેવું ખરું......
ઊર્મિલાએ
જે જવાબ આપ્યો તે એકેએક સ્ત્રીએ યાદ રાખવા જેવો છે કે "શણગાર તો પર-પુરુષોને
રીઝવવા માટે કરવામાં આવે છે" હું જે છું એ મારો પતિ જાણે છે. શણગાર તો ઉપરનું
રૂપ છે અને પતિ ઉપરના રૂપથી સ્થાયી પ્રસન્ન નથી થતો હોતો. ઐશ્વર્ય પ્રદર્શનનું સુખ
આપે છે. મારે પતિનું સુખ જોઈએ, બાકી ભપકાથી રાજી થતો હોય તો એ
બીજીનો ભપકો વધારે જોશે તો એ તરફ ઢળી જશે અને ત્રીજીને જોશે તો એ....
ઊર્મિલા
કહે છે, મારે
ભપકો નથી કરવો. ઊર્મીલાનું ગજબનું પાત્ર છે. હું જેવી છું,
એવીજ મારા પતિ પાસે જઈશ.
હું સુઘડ છું, ફુવડ
નથી. પ્રેમ મર્યાદાનું પાલન કરતો હોય છે. મોહ કદી મર્યાદાનું પાલન નથી કરતો. મોહનો
ઉભરો હોય પણ પ્રેમની ધીરજ હોય. પતિ-પત્નીના પ્રેમમાં અંતરાય ન બનો. આપણાં ઘરો એવાં
કે એમાં કોઈ પ્રાઇવેટ રૂમ નહીં. સ્ત્રીને કંઈ વાત કરવી હોય તો કહેવાય નહિ,
એનું નામ કલ્ચર,
સંસ્કૃતિ અને એમાંને એમાં
કેટલાંયે જીવન ધરબાઈ ગયાં, રીબાઇ રીબાઇને ડોસીઓ થઇ થઈને મરી
ગયાં, પણ ન
કોઈ હૃદય ખોલી શક્યા કે કોઈને વાત ન કરી શક્યા અને જીવવાનો ટાઇમ હતો ત્યારે જીવી ન
શક્યા.
उर्मिला
रामायण में उर्मिला सीता की छोटी बहन एवं
लक्ष्मण की पत्नी हैं।
जब लक्ष्मण श्रीराम और सीता के साथ वनवास गए, तब उर्मिला ने भी
14 वर्षों तक महल में रहकर
तपस्वी की तरह जीवन व्यतीत किया।
सभी सासों की समभाव से सेवा की।
उर्मिला के इसी त्याग की वजह से लक्ष्मण श्रीराम
की सेवा पूरी निष्ठा से कर सके। उर्मिला का पूरा
जीवन सीता के त्याग से भी कही
अधिक महान माना गया है।
उर्मिला एक ऐसा उदाहरण है जो पति और ससुराल के प्रति त्याग
और समर्पण का भाव
सिखाती हैं।
संकलित
आज उर्मिला बोलेगी .....
सावधान ! हे
रघुवंश
वो शब्द एक न तोलेगी
मूक बधिर नहीं,कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
कैकेयी ने दो वरदान लिए
श्री दशरथ ने फिर प्राण दिए
रघुबर आज्ञा शिरोधार्य कर
वन की ओर प्रस्थान किये
भ्रातृप्रेम की प्रचंड ऊष्मा
फिर लखन ह्रदय में डोल गई
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
रघुकुल की यही रीत बनाई
भार्या से न कभी वचन निभाई
पितृभक्ति है सर्वोपरि
फिर पूजते प्रजा और भाई
पत्नी का जीवन क्या होगा
ये सोच कभी न गुजरेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
चौदह बरस तक बाट जोहाया
एक पत्र भी नहीं पठाया
नवयौवन की दहलीज़ फांद कर
अधेड़ावस्था में जीवन आया
इतनी रातें ? कितने आँसू ?
की कीमत क्या अयोध्या देगी ?
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
हाथ जोड़ कर विनती करूँ मैं
सातों जनम मुझे ही अपनाना
परन्तु अगले जनम में लक्ष्मण
राम के भाई नहीं बन जाना
एक जनम जो पीड़ा झेली
अगले जनम न झेलेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
वो शब्द एक न तोलेगी
मूक बधिर नहीं,कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
कैकेयी ने दो वरदान लिए
श्री दशरथ ने फिर प्राण दिए
रघुबर आज्ञा शिरोधार्य कर
वन की ओर प्रस्थान किये
भ्रातृप्रेम की प्रचंड ऊष्मा
फिर लखन ह्रदय में डोल गई
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
रघुकुल की यही रीत बनाई
भार्या से न कभी वचन निभाई
पितृभक्ति है सर्वोपरि
फिर पूजते प्रजा और भाई
पत्नी का जीवन क्या होगा
ये सोच कभी न गुजरेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
चौदह बरस तक बाट जोहाया
एक पत्र भी नहीं पठाया
नवयौवन की दहलीज़ फांद कर
अधेड़ावस्था में जीवन आया
इतनी रातें ? कितने आँसू ?
की कीमत क्या अयोध्या देगी ?
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
हाथ जोड़ कर विनती करूँ मैं
सातों जनम मुझे ही अपनाना
परन्तु अगले जनम में लक्ष्मण
राम के भाई नहीं बन जाना
एक जनम जो पीड़ा झेली
अगले जनम न झेलेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |
उर्मिला- राम काव्य परम्परा में उर्मिला के चरित्र का सफल रेखांकन ‘साकेत’ और ‘उर्मिला’ में मिलता है, जिसमें उसके उपेक्षित व्यक्तित्व को उभारा गया है । ‘साकेत’ का नवम् सर्ग उर्मिला के विरह-विषाद की चरम निदर्शना है । वह अपने मन-मन्दिर में प्रिय की प्रतिभा स्थापित कर सम्पूर्ण भोगों को त्याग कर अपना जीवन योगमय बना लेती है, यथा-
मानस मन्दिर में सती, पति की प्रतिमा थाप,
जलती थी उस विरह में, बनी आरती आप ।
आँखों में प्रिय मूर्ति थी, भूले थे सब भोग,
हुआ योग से भी अधिक, उसका विषम वियोग ।।29
No comments:
Post a Comment